रस - प्रकार, भेद और उदाहरण

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रस - प्रकार, भेद और उदाहरण  (Ras in Hindi Grammar)

रस - प्रकार, भेद और उदाहरण

 (Ras in Hindi Grammar)

परिचय (Introduction)

रस क्या है?

हिंदी साहित्य और व्याकरण में रस का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। रस वह अनुभूति है जो काव्य पढ़ने या सुनने से पाठक या श्रोता के हृदय में उत्पन्न होती है। सरल भाषा में कहें तो जब हम कोई कविता पढ़ते हैं और हमारे मन में खुशी, दुख, गुस्सा, डर जैसी भावनाएं जगती हैं, तो वही रस कहलाता है।


 

प्रामाणिक परिभाषाएं

आचार्य भरतमुनि के अनुसार:

"विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः"


इसका अर्थ है कि विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में: "रस काव्य की आत्मा है। बिना रस के काव्य निर्जीव होता है।"


 

रस को काव्य की आत्मा क्यों कहते हैं?

रस को काव्य की आत्मा इसलिए कहा जाता है क्योंकि:

  • यह काव्य में जीवन का संचार करता है
  • पाठक के मन में भावनाओं को जगाता है
  • काव्य को सुंदर और प्रभावशाली बनाता है
  • साहित्य का मुख्य उद्देश्य आनंद प्रदान करना है, जो रस के द्वारा ही संभव होता है


रस के अंग (Parts of Ras)

रस के चार मुख्य अंग होते हैं:


1. स्थायी भाव (Permanent Emotions)

परिभाषा: मनुष्य के हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान रहने वाले भाव स्थायी भाव कहलाते हैं।

नौ स्थायी भाव हैं:

  1. रति (प्रेम) - शृंगार रस
  2. हास (हंसी) - हास्य रस
  3. शोक (दुख) - करुण रस
  4. क्रोध (गुस्सा) - रौद्र रस
  5. उत्साह (वीरता) - वीर रस
  6. भय (डर) - भयानक रस
  7. जुगुप्सा (घृणा) - वीभत्स रस
  8. विस्मय (आश्चर्य) - अद्भुत रस
  9. निर्वेद (वैराग्य) - शांत रस


2. विभाव (Stimulants)

परिभाषा: जो कारण स्थायी भाव को जगाते हैं, वे विभाव कहलाते हैं।

विभाव के दो भेद:

आलंबन विभाव: जो पात्र भावना पैदा करते हैं

  • उदाहरण: प्रेमी-प्रेमिका (शृंगार रस में), शत्रु (रौद्र रस में)

उद्दीपन विभाव: जो माहौल या परिस्थिति आलंबन के भाव को बढ़ाते हैं।

  • उदाहरण: चांदनी रात, कोयल की कूक (शृंगार रस में), अन्याय का दृश्य (रौद्र रस में)


3. अनुभाव (Physical Expressions)

परिभाषा: भावों की अभिव्यक्ति के लिए होने वाले शारीरिक चेष्टाएं अनुभाव कहलाती हैं।

उदाहरण:

  • रोमांच, आंसू, कंपकंपी, पसीना आना
  • मुस्कराना, हंसना, रोना, चिल्लाना

4. संचारी भाव (Transient Emotions)

परिभाषा: वे भाव जो स्थायी भावों के साथ आते-जाते रहते हैं, संचारी भाव कहलाते हैं।

उदाहरण: निद्रा, स्वप्न, चिंता, हर्ष, गर्व, लज्जा, स्मृति आदि (कुल 33 संचारी भाव होते हैं)


रस के प्रकार (Types of Ras)


क्रमांकरस का नामस्थायी भावमुख्य भावना
1शृंगार रसरति (प्रेम)प्रेम और सौंदर्य
2हास्य रसहास (हंसी)हंसी और प्रसन्नता
3करुण रसशोक (दुख)दुख और करुणा
4रौद्र रसक्रोधक्रोध और गुस्सा
5वीर रसउत्साहवीरता और साहस
6भयानक रसभयडर और आतंक
7वीभत्स रसजुगुप्सा (घृणा)घृणा और विरक्ति
8अद्भुत रसविस्मय (आश्चर्य)आश्चर्य और विस्मय
9शांत रसनिर्वेद (वैराग्य)शांति और वैराग्य
10वात्सल्य रसवत्सल (स्नेह)माता-पिता का स्नेह
11भक्ति रसदेव रति (भगवत्प्रेम)ईश्वर प्रेम

नाट्यशास्त्र के अनुसार मूल रूप से 8 रस माने गए हैं, बाद में शांत रस को मिलाकर 9 रस (मुख्य ) हो गए एवं वात्सल्य रस तथा भक्ति रस को मिला कर वर्तमान में रस के कुल 11 प्रकार है  ।  प्रत्येक रस को विस्तार से समझते हैं:

रस का वर्गीकरण मुख्यतः इनके स्थायी भावों के आधार पर किया गया है। प्रत्येक रस का अपना मुख्य भाव होता है जो उसकी पहचान बनता है।


1. शृंगार रस (Shringar Ras)

परिभाषा: शृंगार रस को "रसराज" कहा जाता है। यह प्रेम और सौंदर्य की भावनाओं से उत्पन्न होता है। यह सबसे व्यापक और लोकप्रिय रस है।

स्थायी भाव: रति (प्रेम)
आलंबन: प्रियतम, प्रियतमा
उद्दीपन: चांदनी, सुगंध, संगीत, प्राकृतिक सौंदर्य, कोयल की कूक, फूलों की सुगंध
अनुभाव: रोमांच, हर्ष, आंसू, गदगद वाणी, पुलकित होना, मुस्कराना
संचारी भाव: हर्ष, उत्कंठा, स्मृति, चिंता, मति, धृति आदि


उदाहरण:

"बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय। सौंह करे, भौंहनि हंसे, दैन कहे, नटि जाय॥" - सूरदास

व्याख्या: इस दोहे में श्रीकृष्ण की बांसुरी छुपाने वाली गोपी का चित्रण है। गोपी कसम खाकर कहती है कि उसके पास बांसुरी नहीं है, लेकिन उसकी भौंहें हंसती हैं और आंखें इशारा करती हैं। यहां प्रेम की चंचलता और मिठास के द्वारा शृंगार रस की पूर्ण अभिव्यक्ति हुई है। गोपी का झूठ बोलना और साथ ही भावों का प्रकट होना प्रेम की मधुर स्थिति को दर्शाता है।


2. हास्य रस (Hasya Ras)

परिभाषा: हास्य रस का उद्गम तब होता है जब किसी की विकृत या हास्यजनक चेष्टा, वेशभूषा या व्यवहार को देखकर हंसी आती है। यह मानसिक प्रसन्नता प्रदान करता है।

स्थायी भाव: हास (हंसी)
आलंबन: विकृत वेश, अनोखी चेष्टा, हास्यास्पद व्यक्ति
उद्दीपन: विचित्र आकृति, हास्यजनक व्यवहार, अनुचित कार्य, मूर्खतापूर्ण बातें
अनुभाव: मुस्कराना, हंसना, पेट पकड़कर हंसना, आंसू आना (हंसते-हंसते)
संचारी भाव: हर्ष, विवेक, चपलता, आवेग आदि


उदाहरण:

"तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप, साज मिले पंद्रह मिनट, घंटा भर आलाप।" - काका हाथरसी

व्याख्या: यहां एक संगीतकार का मजाकिया चित्रण है जो तंबूरा मिलाने में 15 मिनट और आलाप में घंटा भर लगाता है। इस अतिशयोक्ति और व्यंग्यात्मक स्थिति से हास्य रस उत्पन्न होता है। कवि ने संगीतकार की धीमी गति और लंबी तैयारी का मजाक उड़ाया है।


3. करुण रस (Karun Ras)

परिभाषा: करुण रस दुख और शोक की भावनाओं से उत्पन्न होता है। यह विछोह, मृत्यु, हानि या पीड़ा की स्थितियों में अनुभव होता है। इसे "रस की रानी" भी कहा जाता है।

स्थायी भाव: शोक (दुख)
आलंबन: मृत व्यक्ति, दुखी व्यक्ति, वियोगी प्रिय
उद्दीपन: मृत्यु का समाचार, वियोग की स्थिति, दुखदायी दृश्य, स्मृतियां
अनुभाव: रुदन, विलाप, छाती पीटना, सिर पीटना, भूमि पर गिरना
संचारी भाव: निर्वेद, ग्लानि, व्याधि, जड़ता, मोह आदि


उदाहरण:

"अभी तो मुकुट बंधा था माथ, हुए कल ही हल्दी के हाथ। आज करुण कल्पना में बही, वियोग बेला आई अभी।" - जयशंकर प्रसाद

व्याख्या: यहां नवविवाहित की मृत्यु का दुखदायी चित्रण है। कल तक जो हाथों में हल्दी लगाकर विवाह की तैयारी कर रहा था, आज वह संसार छोड़कर चला गया। जीवन की अनिश्चितता और अचानक आई वियोग की स्थिति करुण रस को जन्म देती है। "मुकुट बंधा", "हल्दी के हाथ" जैसे मंगल सूचक शब्दों के साथ "वियोग बेला" का प्रयोग गहरी पीड़ा व्यक्त करता है।


4. रौद्र रस (Raudra Ras)

परिभाषा: रौद्र रस क्रोध की भावना से उत्पन्न होता है। अन्याय, अपमान या अत्याचार देखकर जो तीव्र क्रोध की स्थिति बनती है, वही रौद्र रस है। यह विनाशकारी और प्रलयंकारी शक्ति का प्रतीक है।

स्थायी भाव: क्रोध
आलंबन: शत्रु, अन्यायकारी, अपराधी
उद्दीपन: अन्याय, अपमान, हानि, अत्याचार, दुष्ट व्यवहार
अनुभाव: आंखों का लाल होना, दांत किटकिटाना, भृकुटी चढ़ाना, गर्जना
संचारी भाव: अमर्ष, चपलता, उग्रता, मोह, आवेग आदि


उदाहरण:

"श्री कृष्ण के सुन वचन, अर्जुन क्रोध से जलने लगा। सब शील अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगा॥" - मैथिलीशरण गुप्त

व्याख्या: यहां अर्जुन के क्रोध का चित्रण है। श्रीकृष्ण की बात सुनकर अर्जुन इतना क्रोधित होता है कि वह अपना शील भूलकर हाथ मलने लगता है। "क्रोध से जलने लगा" और "सब शील भूलकर" जैसी अभिव्यक्तियों से रौद्र रस की तीव्रता स्पष्ट होती है। यहां क्रोध इतना प्रबल है कि व्यक्ति अपने संयम को खो देता है।


5. वीर रस (Veer Ras)

परिभाषा: वीर रस उत्साह और साहस की भावना से उत्पन्न होता है। यह युद्ध, दान, दया या धर्म की रक्षा के लिए जागने वाली वीरता की भावना है। इसमें दुष्टों का संहार और न्याय की स्थापना का भाव होता है।

स्थायी भाव: उत्साह (वीरता)
आलंबन: युद्ध, शत्रु, संकट, धर्म संकट
उद्दीपन: रणभूमि, शस्त्र, वीर गाथा, युद्ध की गर्जना, ध्वजा
अनुभाव: रोमांच, गर्जना, शस्त्र संचालन, सीना फुलाना, दृढ़ता
संचारी भाव: गर्व, औत्सुक्य, धृति, मति, उत्कंठा आदि


उदाहरण:

"वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं। वह खून कहो किस मतलब का, आ सके देश के काम नहीं॥" - रामधारी सिंह दिनकर

व्याख्या: कवि दिनकर जी कहते हैं कि उस खून का क्या मतलब जिसमें देशभक्ति का जोश न हो। "उबाल का नाम नहीं" और "देश के काम नहीं" जैसी अभिव्यक्तियों से वीर रस की पूर्ण अनुभूति होती है। यहां कवि युवाओं को देश के लिए जान न्यौछावर करने की प्रेरणा देता है, जो वीर रस का सुंदर उदाहरण है।


6. भयानक रस (Bhayanak Ras)

परिभाषा: भयानक रस भय और आतंक की भावना से उत्पन्न होता है। जब व्यक्ति किसी डरावनी वस्तु, स्थिति या प्राणी को देखकर भयभीत हो जाता है, तो भयानक रस की स्थिति बनती है।

स्थायी भाव: भय (डर)
आलंबन: हिंसक जीव, भूत-प्रेत, अंधकार, दुष्ट शक्तियां
उद्दीपन: भयावह दृश्य, रहस्यमय वातावरण, डरावनी आवाजें, निर्जन स्थान
अनुभाव: कंपकंपी, रोमांच, पसीना आना, चेहरा पीला पड़ना, हकलाहट
संचारी भाव: त्रास, संभ्रम, वेपथु, दैन्य, ग्लानि आदि


उदाहरण:

"एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय। विकल बटोही बीच में, परयो मूर्छा खाय॥" - तुलसीदास

व्याख्या: यात्री एक तरफ अजगर और दूसरी तरफ शेर को देखकर डर के मारे बेहोश हो जाता है। "विकल" और "मूर्छा खाय" शब्दों से भयानक रस की स्पष्ट अभिव्यक्ति होती है। दोनों तरफ मृत्यु का भय देखकर व्यक्ति की यह दशा भयानक रस का प्रभावशाली चित्रण है।


7. वीभत्स रस (Veebhatsa Ras)

परिभाषा: वीभत्स रस घृणा और जुगुप्सा की भावना से उत्पन्न होता है। गंदगी, सड़ांध, या किसी घृणित वस्तु को देखकर जो विरक्ति उत्पन्न होती है, वही वीभत्स रस है।

स्थायी भाव: जुगुप्सा (घृणा)
आलंबन: गंदगी, सड़े-गले पदार्थ, कुरूप व्यक्ति या वस्तु
उद्दीपन: दुर्गंध, घृणास्पद दृश्य, रक्त-मांस, मृत शरीर
अनुभाव: मुंह बिचकाना, उल्टी आना, मुंह फेरना, नाक-मुंह बंद करना
संचारी भाव: ग्लानि, मोह, व्याधि, चिंता, जड़ता आदि


उदाहरण:

"सिर पै बैठ्यो काग आंख दोउ खात निकारत। खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनंद उर धारत॥" - तुलसीदास

व्याख्या: युद्धभूमि में मृत शरीरों को कौवे और सियार नोच रहे हैं। कौवा आंखें निकाल रहा है और सियार जीभ खींच रहा है। इस घृणास्पद दृश्य से वीभत्स रस उत्पन्न होता है। "खात निकारत" और "खींचत जीभहिं" जैसी क्रियाएं इस रस को और भी तीव्र बनाती हैं।


8. अद्भुत रस (Adbhuta Rasa)

परिभाषा: अद्भुत रस विस्मय और आश्चर्य की भावना से उत्पन्न होता है। जब व्यक्ति कोई अलौकिक, असाधारण या चमत्कारिक घटना देखता है तो अद्भुत रस की अनुभूति होती है।

स्थायी भाव: विस्मय (आश्चर्य)
आलंबन: आश्चर्यजनक वस्तु या घटना, अलौकिक शक्ति
उद्दीपन: अलौकिक शक्ति, चमत्कार, असामान्य दृश्य, विचित्र घटनाएं
अनुभाव: आंखें फाड़कर देखना, स्तब्ध रह जाना, रोमांच, गद्गद होना
संचारी भाव: वितर्क, मति, आवेग, हर्ष, त्रास आदि


उदाहरण:

"देख योगबल पवन का, मेघ रूप धर लीन्ह। गिरि को पकरि कर में लै, पार समुद्र के कीन्ह॥" - तुलसीदास

व्याख्या: हनुमान का समुद्र पार करना और पर्वत को हाथ में लेकर उड़ना, यह अलौकिक कार्य अद्भुत रस उत्पन्न करता है। "योगबल", "मेघ रूप धर लीन्ह", और "गिरि को पकरि कर में लै" जैसी अभिव्यक्तियां हनुमान की अद्भुत शक्ति को दर्शाती हैं जो पाठक में विस्मय की भावना जगाती है।:** विस्मय (आश्चर्य) आलंबन: आश्चर्यजनक वस्तु या घटना उद्दीपन: अलौकिक शक्ति, चमत्कार अनुभाव: आंखें फाड़कर देखना, स्तब्ध रह जाना


उदाहरण:

"देख योगबल पवन का, मेघ रूप धर लीन्ह। गिरि को पकरि कर में लै, पार समुद्र के कीन्ह॥" - तुलसीदास

व्याख्या: हनुमान का समुद्र पार करना और पर्वत को हाथ में लेकर उड़ना, यह अलौकिक कार्य अद्भुत रस उत्पन्न करता है।


9. शांत रस (Shanta Rasa)

परिभाषा: शांत रस निर्वेद और वैराग्य की भावना से उत्पन्न होता है। यह तत्वज्ञान, आत्मा-परमात्मा के ज्ञान और संसार की नश्वरता को समझकर मिलने वाली शांति की अवस्था है।

स्थायी भाव: निर्वेद (वैराग्य)
आलंबन: परमात्मा, तत्वज्ञान, आत्मा
उद्दीपन: धर्मग्रंथ, संत-महात्मा, आध्यात्मिक प्रसंग, तीर्थ स्थल
अनुभाव: धीरता, स्थिरता, समता, मौनता, शांत मुद्रा
संचारी भाव: धृति, मति, स्मृति, निर्वेद, विवेक आदि


उदाहरण:
"कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥"
- कबीरदास

व्याख्या: कबीर संसार में सबका कल्याण चाहते हैं, न किसी से दोस्ती न किसी से दुश्मनी। यह शांत रस की पूर्ण अभिव्यक्ति है। "सबकी खैर" मांगना और समानता की भावना से वैराग्य का परिचय मिलता है।


10. वात्सल्य रस (Vatsalya Rasa)

परिभाषा: वात्सल्य रस माता-पिता के बच्चों के प्रति स्नेह और प्रेम की भावना से उत्पन्न होता है। यह निस्वार्थ प्रेम, संरक्षण की भावना और अपनत्व से भरा होता है। इसमें बड़ों का छोटों के प्रति स्नेह मुख्य होता है।

स्थायी भाव: वत्सल (स्नेह)
आलंबन: संतान, छोटे बच्चे, शिष्य
उद्दीपन:बच्चों की चेष्टाएं, मासूमियत, बाल लीलाएं, रुदन
अनुभाव: आलिंगन, चूमना, दुलारना, सिर पर हाथ फेरना, खिलाना
संचारी भाव: हर्ष, चिंता, स्नेह, ममता, गर्व आदि


उदाहरण:

"मैया कबहिं बढ़ैगी चोटी?
किती बार मोहि दूध पिआयो, भई न एको घोटी॥"
- सूरदास

व्याख्या: बालकृष्ण अपनी माता यशोदा से पूछ रहे हैं कि उनकी चोटी कब बढ़ेगी। वे कहते हैं कि इतना दूध पिया है फिर भी एक घूंट (घोटी) भी चोटी नहीं बढ़ी। बच्चे की यह मासूम जिज्ञासा और माता-पुत्र का संवाद वात्सल्य रस का सुंदर उदाहरण है।


11. भक्ति रस (Bhakti Rasa)

परिभाषा: भक्ति रस भगवान के प्रति अनन्य प्रेम और श्रद्धा की भावना से उत्पन्न होता है। यह आत्मसमर्पण, विनम्रता और ईश्वर प्रेम की पराकाष्ठा है। इसमें भक्त अपना सब कुछ प्रभु को अर्पण कर देता है।

स्थायी भाव: देव रति (भगवत्प्रेम)
 

आलंबन: इष्टदेव, भगवान के रूप, गुरु
उद्दीपन: मूर्ति, मंदिर, धर्मग्रंथ, संकीर्तन, आरती, प्रसाद
अनुभाव: आंसू, रोमांच, गदगद वाणी, नृत्य, स्तुति, प्रणाम
संचारी भाव: निर्वेद, धृति, मति, विनय, दैन्य आदि
उदाहरण:
"सुमिरन को मारग है सहज सुभाउ न और।
जिहि खाल करम मन बचन बिनु गुर पावइ कोउ॥"
- तुलसीदास

 


 

व्याख्या: तुलसीदास कहते हैं कि स्मरण का मार्ग सहज स्वभाव है, कोई और नहीं। जिसके मन, वचन और कर्म शुद्ध होते हैं, गुरु के बिना भी वह प्रभु को पा सकता है। यहां भक्ति रस की पूर्ण अभिव्यक्ति है, जो सच्ची भक्ति की महिमा बताती है।


 

रस के उपप्रकार (Subtypes of Rasa)

शृंगार रस के भेद

1. संयोग शृंगार

जब प्रियतम और प्रियतमा का मिलन होता है।

उदाहरण:

"कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात। भरे भौन में करत हैं, नैननि ही सौ बात॥" - बिहारी

2. वियोग शृंगार

जब प्रियतम और प्रियतमा का बिछोह होता है।

उदाहरण:

"निसि दिन बरसत नैन हमारे, सदा रहति पावस ऋतु हम पै॥" - सूरदास


वीर रस के भेद

1. युद्धवीर

युद्ध में दिखाई जाने वाली वीरता।

2. दानवीर

दान देने की वीरता।

3. दयावीर

दया दिखाने की वीरता।

उदाहरण (दानवीर):

"कह दे रे कर्ण से आ कर लड़ने को तैयार, मांगने आया हूं मैं आज भीख स्वीकार॥"


हास्य रस के भेद

1. हास्य (स्वस्थ हंसी)

सामान्य हास्य जो किसी को दुख न पहुंचाए।

2. परिहास (व्यंग्यपूर्ण हंसी)

किसी की कमी को लेकर हंसना।


रस का महत्व (Importance of Rasa in Literature)

काव्य में रस की भूमिका

  1. जीवंतता प्रदान करना: रस काव्य को जीवंत बनाता है
  2. भावों की अभिव्यक्ति: मानवीय भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम
  3. पाठक से जुड़ाव: रस के द्वारा पाठक काव्य से जुड़ाव महसूस करता है
  4. आनंद प्रदान करना: साहित्य का मुख्य उद्देश्य


साहित्यिक सौंदर्य में योगदान

  • रस काव्य की भाषा को सुंदर बनाता है
  • शब्द चयन में सहायक होता है
  • भावों की गहराई प्रदान करता है
  • पाठक की कल्पना को उड़ान देता है


 

रस और अलंकार का संबंध
रस और अलंकार दोनों काव्य के सौंदर्य बढ़ाने वाले तत्व हैं: -
-अलंकार काव्य की बाहरी सुंदरता बढ़ाते हैं
- रस काव्य की आंतरिक आत्मा है
- दोनों मिलकर काव्य को संपूर्ण बनाते हैं
 

 विभिन्न काव्य रूपों में रस

 -महाकाव्य में रस
- एक प्रधान रस होता है
- अन्य रस सहायक होते हैं
- उदाहरण: रामायण में शांत रस प्रधान
 

 -गीतिकाव्य में रस
- एक ही रस की प्रधानता
- संक्षिप्त और तीव्र भावाभिव्यक्ति
- उदाहरण: कबीर के दोहे में शांत रस

-नाटक में रस
- अनेक रस का प्रयोग
- परिस्थिति के अनुसार रस बदलता है


याद रखने योग्य तथ्य

1. रस के जनक: भरतमुनि
2. रसों की संख्या: 9 (मूल 8 + शांत)
3. रस के अंग: 4 (स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव, संचारी भाव)
4. संचारी भावों की संख्या:  33

 

निष्कर्ष (Conclusion)

रस हिंदी साहित्य की वह आधारशिला है जिस पर संपूर्ण काव्य संसार टिका हुआ है। यह न केवल काव्य को सुंदर बनाता है बल्कि पाठक के मन में स्थायी प्रभाव भी छोड़ता है। भरतमुनि से लेकर आधुनिक काल तक के सभी आचार्यों ने रस को काव्य का प्राण माना है। प्रत्येक रस की अपनी विशेषता है और अपना क्षेत्र है। चाहे प्रेम की मधुरता हो (शृंगार), वीरता का जोश हो (वीर), दुख की पीड़ा हो (करुण) या फिर हंसी की खुशी हो (हास्य) - हर रस हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। छात्रों के लिए रस की समझ अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यह न केवल परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि साहित्य की सही समझ के लिए भी अनिवार्य है। जब हम रस को समझ लेते हैं तो हमें काव्य पढ़ने में वह आनंद आता है जिसकी कल्पना कवि ने की थी। रस वास्तव में काव्य की आत्मा है - यह सत्य है और यही कारण है कि हजारों वर्षों से यह सिद्धांत आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पहले था।


यह भी पढ़ें - 

हिंदी काव्य लेखन में मात्रा गणना

 

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