हिंदी काव्य लेखन में मात्रा गणना
परिचय
काव्य की दुनिया में मात्रा गणना एक अत्यंत महत्वपूर्ण कला है। जब हम कोई सुंदर दोहा या चौपाई सुनते हैं तो उसमें एक विशेष लय होती है, एक मधुरता होती है — यह सब मात्राओं के सही संयोजन से आती है। मात्रा वह समय है जो किसी वर्ण के उच्चारण में लगता है, और छंद शास्त्र में इसकी सही गणना ही काव्य को संगीत जैसी मधुरता प्रदान करती है।
छंद आधारित कविता में मात्रा गणना का महत्व इसलिए है क्योंकि यह किसी भी काव्य रचना की आधारशिला होती है। चाहे वह तुलसीदास जी की रामायण हो या बिहारी के दोहे, सभी में मात्राओं की गणना का कठोर अनुशासन दिखता है। अगर एक भी मात्रा कम या ज्यादा हो जाए तो छंद की संरचना टूट जाती है और काव्य अपनी मधुरता खो देता है।
रिसाइटेशन और काव्य पाठ में भी मात्रा गणना की समझ अत्यंत आवश्यक है। जब आप किसी दोहे या चौपाई का पाठ करते हैं तो मात्राओं की सही गिनती से ही उसकी वास्तविक लय और ताल का अनुभव होता है। उदाहरण के लिए, "श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार" में प्रथम पंक्ति में 13 मात्राएँ और द्वितीय में 11 मात्राएँ हैं — यही दोहा छंद की पहचान है।
बुनियादी परिभाषाएँ
- वर्ण भाषा की सबसे छोटी ध्वनि इकाई है। स्वर वे वर्ण हैं जो बिना किसी सहायता के उच्चारित होते हैं (जैसे अ, आ, इ), जबकि व्यंजन स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं (जैसे क्, ख्, ग्)।
- मात्रा का सीधा अर्थ है — किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाला समय। छंदशास्त्र में यह समय दो प्रकार का होता है: ह्रस्व (कम समय) और दीर्घ (अधिक समय)।
- ह्रस्व स्वर वे हैं जिनके उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है। ये केवल चार हैं: अ, इ, उ, ऋ।
- दीर्घ स्वर वे हैं जिनके उच्चारण में दो मात्रा का समय लगता है: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः।
स्वर मात्रा तालिका
संपूर्ण नियम विवरण
स्वर संबंधी नियम
मूल सिद्धांत: केवल स्वर की मात्रा गिनी जाती है, व्यंजन की नहीं।
ह्रस्व स्वर (1 मात्रा): अ, इ, उ, ऋ
उदाहरण: कब (क्+अ, ब्+अ) = 1+1 = 2 मात्रा
दीर्घ स्वर (2 मात्रा): आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
उदाहरण: काम (क्+आ, म्+अ) = 2+1 = 3 मात्रा
अनुस्वार और विसर्ग का नियम
अनुस्वार (ं): जिस भी स्वर पर अनुस्वार लगता है, वह स्वर दीर्घ (2 मात्रा) हो जाता है।
गंगा = गं + गा = 2 + 2 = 4 मात्रा
कंठ = कं + ठ = 2 + 1 = 3 मात्रा
संग = सं + ग = 2 + 1 = 3 मात्रा
विसर्ग (ः): अनुस्वार की तरह ही विसर्ग भी अपने स्वर को दीर्घ बना देता है।
रामः = रा + मः = 2 + 2 = 4 मात्रा
देवः = दे + वः = 2 + 2 = 4 मात्रा
चन्द्रबिन्दु का नियम
चन्द्रबिन्दु (अँ): यह स्वर की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं करता।
गाँव = गाँ + व = 2 + 1 = 3 मात्रा (गा = 2 ही रहेगा)
आँख = आँ + ख = 2 + 1 = 3 मात्रा
संयुक्ताक्षर और हलन्त के नियम
संयुक्ताक्षर की गणना: संयुक्ताक्षर में केवल स्वर की मात्रा गिनी जाती है।
प्रेम = प्रे (ए) + म(अ) = 2 + 1 = 3 मात्रा
स्वर = स्व (अ) + र(अ) = 1 + 1 = 2 मात्रा
संयुक्ताक्षर का पूर्ववर्ती प्रभाव: यदि संयुक्ताक्षर से पहले कोई ह्रस्व स्वर हो तो वह दीर्घ हो जाता है।
सत्य = स + त्य = 2 + 1 = 3 मात्रा
वत्स = व + त्स = 2 + 1 = 3 मात्रा
कर्म = क + र्म = 2 + 1 = 3 मात्रा
संयुक्ताक्षर से पहले दीर्घ स्वर: अगर संयुक्ताक्षर से पहले दीर्घ स्वर है तो वह अपरिवर्तित रहता है।
वाद्य = वा + द्य = 2 + 1 = 3 मात्रा
हास्य = हा + स्य = 2 + 1 = 3 मात्रा
हलन्त का नियम: हलन्त चिह्न (्) लगे व्यंजन की गणना नहीं होती।
जगत् - 1+1 = 2 मात्रा (हलंत वाले शब्द में स्वर नहीं है इसलिए)
अपवाद और विशेष स्थितियाँ
ह्-संयुक्त अपवाद: जब किसी व्यंजन के साथ 'ह्' जुड़कर संयुक्ताक्षर बनता है, तो कभी-कभी पूर्ववर्ती लघु वर्ण दीर्घ नहीं होता।
तुम्हारा = तु + म्हा + रा = 1 + 2 + 2 = 5 मात्रा
कन्हाई = क + न्हाई = 1 + 3 = 4 मात्रा
द्विलघु = एक दीर्घ का नियम
नियम का विवरण:
जब दो लघु वर्ण (ह्रस्व स्वर वाले) लगातार आएँ तो छंद की गति और लय बनाए रखने के लिए उन्हें एक दीर्घ वर्ण (गुरु मात्रा) माना जा सकता है।
छंद की गणना में—
दो लघु (। ।) = एक दीर्घ (ऽ)
यानि, दो लघु मात्रा की जोड़ी को एक दीर्घ मात्रा के बराबर माना जाता है.
क्यों ज़रूरी है:
कभी छंद-विधान या पद्य की गति में प्रवाह साधने के लिए या छंद की निर्धारित मात्रा/वर्ण-क्रम (गण) मिलाने हेतु यह बदलाव किया जाता है।
यह छंद-पिंगल, संस्कृत छंदों और हिंदी वर्णिक छंदों में महत्वपूर्ण माना जाता है—विशेषकर तब जब पाठ/गायन आदि में लय बनाना हो.उदाहरण
'शपथ' शब्द में
श + प + थ = श(1) +[ प(1) + थ (2) = पथ (2) = 1+2 = 3
परंपरागत उच्चारण आधारित अपवाद: कुछ शब्दों में व्यावहारिक उच्चारण के अनुसार मात्रा गिनी जाती है।
तेज गति उच्चारण में मात्रा परिवर्तन (मात्रापतन)
वाचिक भार की अवधारणा
छंद शास्त्र में मात्रा गणना के दो मुख्य आधार हैं: वर्णिक भार और वाचिक भार। वर्णिक भार में प्रत्येक वर्ण की निर्धारित मात्रा यथावत मानी जाती है, जबकि वाचिक भार में वास्तविक उच्चारण के अनुसार मात्रा की गणना होती है।
मुख्य सिद्धांत: जब छंद का गायन या तीव्र गति से पाठ किया जाता है, तो कई बार दीर्घ स्वरों का उच्चारण संक्षिप्त हो जाता है और उनकी मात्रा 2 के स्थान पर 1 गिनी जाती है।
मात्रापतन के मुख्य नियम
नियम 1: गायन में दीर्घ का लघुकरण
गायन के समय यदि छंद की संरचना के लिए आवश्यक हो तो दीर्घ स्वर को लघु की भांति उच्चारित किया जा सकता है।
उदाहरण:
कबीरा खड़ा बाज़ार में - यहाँ 'कबीरा' का उच्चारण 'कबिरा' और 'बाज़ार' का उच्चारण 'बज़ार' किया गया है
कबीरा - क(1) + बी(1) + रा(2) (बी का मात्राभार 1 लिया गया है)
बाज़ार - बा(1) + ज़ा (2) +र (1) (बा का मात्राभार 1लिया गया है)
नियम 2: तीव्र गति में स्वर संक्षेपण
जब कविता का पाठ तीव्र गति से किया जाता है, तो दीर्घ स्वर स्वाभाविक रूप से संक्षिप्त हो जाते हैं।
उदाहरण:
"मैं" (2 मात्रा) → "मैं" (1 मात्रा) तेज गति में
"कहीं" (1+2 = 3) → "कहिं" (1+1 = 2) शीघ्र उच्चारण में
"गाँव" (2+1 = 3) → "गंव" (1+1 = 2) तीव्रता से बोलने पर
कुल मत्रा - कबीरा(1+1+2) खड़ा (1+2) बाज़ार (1+2+1) में (2) = कुल 13 मात्रा
नियम 3: लय सामंजस्य हेतु मात्रा समायोजन
छंद की लय बनाए रखने के लिए आवश्यकतानुसार दीर्घ मात्रा को लघु माना जा सकता है।
उदाहरण:
"अपनी भगतिया सतगुरु साहब" में "अपनी" को "अपनि" के रूप में उच्चारित करना
अपवाद और सीमाएं
अपवाद 1: अनुस्वार/विसर्ग के साथ
अनुस्वार और विसर्ग युक्त स्वर सामान्यतः तेज गति में भी दीर्घ ही रहते हैं।
गंगा = गं(2) + गा(2) = 4 (अपरिवर्तित)
नमः = न(1) + मः(2) = 3 (अपरिवर्तित)
अपवाद 2: संयुक्ताक्षर प्रभाव
संयुक्ताक्षर के कारण दीर्घ हुआ पूर्ववर्ती स्वर तेज गति में भी प्रायः दीर्घ ही रहता है।
सत्य = स(2) + त्य(1) = 3 (सामान्यतः अपरिवर्तित)
सीमा 1: काव्य की गुणवत्ता
मात्रापतन का अत्यधिक प्रयोग काव्य की मधुरता को हानि पहुँचा सकता है।
सीमा 2: क्षेत्रीय भिन्नता
विभिन्न क्षेत्रों में उच्चारण की भिन्नता के कारण मात्रापतन के नियम अलग हो सकते हैं
मात्रापतन के व्यावहारिक सुझाव
सुझाव 1: संयम से प्रयोग
मात्रापतन का प्रयोग केवल वहीं करें जहाँ छंद की संरचना के लिए अत्यंत आवश्यक हो।
सुझाव 2: स्वाभाविकता बनाए रखें
कृत्रिम रूप से मात्रा बदलने से बचें। केवल प्राकृतिक उच्चारण के अनुसार ही परिवर्तन करें।
सुझाव 3: संदर्भ का महत्व
भक्ति काव्य, लोक गीत, और शास्त्रीय छंद में मात्रापतन के नियम भिन्न हो सकते हैं।
सुझाव 4: श्रोता की सुविधा
गायन या पाठ के समय श्रोता की समझ में कमी न आए, इस बात का ध्यान रखें।
व्यावहारिक उदाहरण (Step-by-step विश्लेषण)
सरल शब्द उदाहरण
उदाहरण 1: "राधा"
रा = र् + आ = 2 मात्रा
धा = ध् + आ = 2 मात्रा
कुल = 2 + 2 = 4 मात्रा
उदाहरण 2: "गंगा"
गं = ग् + अं = 2 मात्रा (अनुस्वार के कारण)
गा = ग् + आ = 2 मात्रा
कुल = 2 + 2 = 4 मात्रा
जटिल पंक्ति उदाहरण
उदाहरण 3: "श्री गुरु चरण सरोज रज"
श्री = श्र् + ई = 2 मात्रा
गु = ग् + उ = 1 मात्रा
रु = र् + उ = 1 मात्रा
च = च् + अ = 1 मात्रा
रण = र् + अ + ण् + अ = 1 + 1 = 2 मात्रा
स = स् + अ = 1 मात्रा
रो = र् + ओ = 2 मात्रा
ज = ज् + अ = 1 मात्रा
र = र् + अ = 1 मात्रा
ज = ज् + अ = 1 मात्रा
कुल = 2+1+1+1+2+1+2+1+1+1 = 13 मात्रा
उदाहरण 4: "बड़ा भया तो क्या भया"
बड़ा = ब् + अ + ड़् + आ = 1 + 2 = 3 मात्रा
भया = भ् + अ + य् + आ = 1 + 2 = 3 मात्रा
तो = त् + ओ = 2 मात्रा
क्या = क्य् + आ = 2 मात्रा
भया = भ् + अ + य् + आ = 1 + 2 = 3 मात्रा
कुल = 3+3+2+2+3 = 13 मात्रा
संयुक्ताक्षर के साथ उदाहरण
उदाहरण 5: "सत्य और न्याय"
सत्य = स + त्य = 2 + 1 = 3 मात्रा (स् + अ दीर्घ हो गया)
और = औ + र = 2 + 1 = 3 मात्रा
न्याय = न्या + य = 2 + 1 = 3 मात्रा
कुल = 3+3+3 = 9 मात्रा
दोहा छंद का पूर्ण उदाहरण
उदाहरण 6: पूरा दोहा विश्लेषण
"बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं, फल लागैं अति दूर॥"
प्रथम पंक्ति: "बड़ा हुआ तो क्या हुआ"
बड़ा = 1+2 = 3
हुआ = 1+2 = 3
तो = 2
क्या = 2
हुआ = 1+2 = 3
कुल = 3+3+2+2+3 = 13 मात्रा
द्वितीय पंक्ति: "जैसे पेड़ खजूर"
जै = 2
से = 2
पे = 2
ड़ = 1
ख = 1
जू = 2
र = 1
कुल = 2+2+2+1+1+2+1 = 11 मात्रा
यह दोहा छंद का सही उदाहरण है (13+11 मात्रा पैटर्न)।
आम गलतियाँ और उनसे बचने के तरीके
गलती 1: व्यंजन की मात्रा गिनना
गलत: क्, ख्, ग् की अलग से मात्रा गिनना
सही: केवल स्वर की मात्रा गिनें — क = क्+अ = 1 मात्रा
गलती 2: अनुस्वार/विसर्ग की गलत गणना
गलत: गंगा = गं(1) + गा(2) = 3 मात्रा
सही: गंगा = गं(2) + गा(2) = 4 मात्रा
गलती 3: संयुक्ताक्षर का गलत प्रभाव
गलत: सत्य = स(1) + त्य(1) = 2 मात्रा
सही: सत्य = स(2) + त्य(1) = 3 मात्रा
गलती 4: चन्द्रबिन्दु की गलत गणना
गलत: गाँव = गाँ(3) + व(1) = 4 मात्रा
सही: गाँव = गाँ(2) + व(1) = 3 मात्रा
गलती 5: हलन्त की गणना करना
'श्रीमान्'
श् + री (2) + मा + आ (2) + न् (हलन्त, 0)
मात्रा: री (2) + मा (2); न् (हलन्त) = 0
कुल मात्रा = 2 + 2 = 4
मात्रा गिनने की व्यवस्थित प्रक्रिया
चरण-दर-चरण विधि
चरण 1: पंक्ति को शब्दों में बाँटिए
उदाहरण: "राम गया घर" → राम + गया + घर
चरण 2: प्रत्येक शब्द में स्वरों की पहचान करिए
राम = रा (आ) + म (अ) = 2 + 1 = 3 मात्रा
गया = ग (अ) + या (आ) = 1 + 2 = 3 मात्रा
घर = घ (अ) + र (अ) = 1 + 1 = 2 मात्रा
चरण 3: प्रत्येक स्वर की मात्रा लगाइए (नियमानुसार)
ह्रस्व = 1, दीर्घ = 2, अनुस्वार/विसर्ग = 2
चरण 4: विशेष स्थितियों की जाँच करिए
संयुक्ताक्षर का प्रभाव
अनुस्वार/विसर्ग की उपस्थिति
हलन्त की स्थिति
चरण 5: कुल मात्रा जोड़िए
राम गया घर = 3 + 3 + 2 = 8 मात्रा
संक्षेप/निष्कर्ष
मुख्य बिंदु
मूल सिद्धांत: केवल स्वर की मात्रा गिनी जाती है, व्यंजन की नहीं
ह्रस्व स्वर: अ, इ, उ, ऋ = 1 मात्रा
दीर्घ स्वर: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ = 2 मात्रा
अनुस्वार/विसर्ग: हमेशा स्वर को दीर्घ (2 मात्रा) बनाते हैं
चन्द्रबिन्दु: स्वर की मात्रा अपरिवर्तित रखता है
संयुक्ताक्षर: पूर्ववर्ती लघु को दीर्घ बना देता है
हलन्त: गणना में शामिल नहीं होता
व्यावहारिक उच्चारण: कुछ अपवादों में परंपरागत उच्चारण के अनुसार मात्रा गिनी जाती है
रचनाकार के लिए त्वरित चेकलिस्ट
- स्वर पहचान: प्रत्येक अक्षर में स्वर की पहचान करें
- ह्रस्व-दीर्घ वर्गीकरण: अ,इ,उ,ऋ = 1; बाकी = 2
- अनुस्वार/विसर्ग जाँच: ं/ः वाले स्वर = 2 मात्रा
- संयुक्ताक्षर प्रभाव: पूर्ववर्ती का दीर्घीकरण जांचें
- चन्द्रबिन्दु उपेक्षा: अँ में केवल आधार स्वर गिनें
- हलन्त निकालें: अंतिम हलन्त को हटा दें
- कुल गणना: सभी मात्राएँ जोड़कर पुष्टि करें
- छंद मिलान: दोहा(13-11), चौपाई(16) आदि से मिलान करें
यदि किसी नियम पर मतभेद हो तो सामान्य रचनाकार को सरल और व्यावहारिक नियमों को अपनाना चाहिए जो इस लेख में प्रस्तुत किए गए हैं। जटिल अपवादों के लिए किसी छंद गुरु से सलाह लेना उत्तम होगा।
मात्रा गणना एक कला है जो अभ्यास से सिद्ध होती है। नियमित अभ्यास और धैर्य के साथ कोई भी व्यक्ति इसमें दक्षता प्राप्त कर सकता है और सुंदर छंदबद्ध काव्य रच सकता है।