वर्ण विचार : स्वर, व्यंजन एवं मात्राएं

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वर्ण विचार : स्वर, व्यंजन एवं मात्राएं


 Varn Vichar in Hindi: Swar, Vyanjan, Bhed Aur Udaharan (वर्ण विचार: स्वर, व्यंजन, भेद और उदाहरण) | Complete Guide for All Exams

 

क्या आपने कभी सोचा है कि जिस विशाल इमारत में हम रहते हैं, उसकी शुरुआत कहाँ से होती है? एक छोटी ईंट से, है न? ठीक वैसे ही, हमारी हिन्दी भाषा की भव्यता और संरचना की नींव भी उसके सबसे छोटे कणों में छिपी है, जिन्हें हम वर्ण (Varn) कहते हैं।

अगर आप हिन्दी भाषा को शुद्ध रूप में पढ़ना, लिखना और बोलना सीखना चाहते हैं, या किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में हिन्दी व्याकरण में पूरे अंक लाना चाहते हैं, तो वर्ण विचार से बेहतर कोई विषय नहीं। यह व्याकरण की आत्मा है।

तो आइए, एक शिक्षक की तरह, सरलता से इस महत्वपूर्ण विषय को गहराई से समझते हैं।


 

I. Introduction (आमुख: भाषा की नींव)

वर्ण (Varn) और वर्ण विचार की परिभाषा

 भाषा की ईंट: वर्ण क्या है?

वर्ण (Varn): यह भाषा की वह सबसे छोटी ध्वनि है, जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते। वर्ण को ही मूल ध्वनि भी कहते हैं।

उदाहरण: 'कमल' शब्द में तीन मूल ध्वनियाँ हैं: क् + अ + म् + अ + ल् + अ। इन क्, अ, म्, ल् आदि को ही हम वर्ण कहते हैं।

 

 अक्षर (Akshar)

अक्षर वह ध्वनि समूह है जिसका उच्चारण एक साँस या एक झटके में हो जाता है। अक्षर, वर्ण से बड़ा होता है।

  • उदाहरण: 'कमल' में तीन अक्षर हैं: क-म-ल।

 

वर्ण विचार (Varn Vichar)

व्याकरण का वह भाग जिसके अंतर्गत वर्णों के उच्चारण (Pronunciation)भेद (Types)आकार (Shape) और उन्हें लिखने की विधि (Method) पर विचार किया जाता है, उसे वर्ण विचार कहते हैं।

 

हिन्दी की वर्णमाला (Hindi Varnamala)

वर्णों के व्यवस्थित (Systematic) समूह को वर्णमाला कहते हैं। मानक हिन्दी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण हैं, जिन्हें मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा गया है:

  1. स्वर (Swar)
  2. व्यंजन (Vyanjan)

 

I. Swar (स्वर - Vowels)1

परिभाषा

स्वर वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में फेफड़ों से निकलने वाली वायु (हवा) मुख से बिना किसी रुकावट या बाधा के बाहर निकल जाती है। इनके उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता नहीं लेनी पड़ती।

  • हिन्दी में स्वरों की संख्या: 11 (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ)।

 

 स्वर के भेद (Types of Swar)

स्वरों को अलग-अलग आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है, जो परीक्षाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण है:

1. मात्रा या उच्चारण काल के आधार पर (Based on Duration)

उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं। इस आधार पर स्वर तीन प्रकार के होते हैं:

भेदपरिभाषासंख्याउदाहरण (मात्रा)
ह्रस्व स्वर (Hrasva Swar)जिनके उच्चारण में सबसे कम (एक मात्रा जितना) समय लगता है। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।4अ, इ, उ, ऋ (क, कि, कु, कृ)
दीर्घ स्वर (Dirgha Swar)जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दुगुना (दो मात्रा जितना) समय लगता है।7आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ (का, की, कू, के, कै, को, कौ)
प्लुत स्वर (Plut Swar)जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक (तीन मात्रा जितना) समय लगता है। इसका प्रयोग अक्सर पुकारने या नाटकों में किया जाता है।-ओउम् (Om), राऽऽऽम


2. ओष्ठ (होठों) की आकृति के आधार पर (Based on Lip Shape)

भेदपरिभाषाउदाहरण
वृत्तमूखी (Vrutta Mukhi)जिनके उच्चारण में होंठों का आकार गोल हो जाता है।उ, ऊ, ओ, औ
अवृत्तमूखी (Avrutta Mukhi)जिनके उच्चारण में होंठ गोल न होकर फैल जाते हैं।अ, आ, इ, ई, ए, ऐ


3. जीभ के प्रयोग के आधार पर (Based on Tongue Position)

भेदजीभ का भागउदाहरण
अग्र स्वर (Agra Swar)जीभ का अगला भाग सक्रिय हो।इ, ई, ए, ऐ
मध्य स्वर (Madhya Swar)जीभ का मध्य भाग सक्रिय हो।
पश्च स्वर (Pashchat Swar)जीभ का पिछला भाग सक्रिय हो।आ, उ, ऊ, ओ, औ

 


II. Vyanjan (व्यंजन - Consonants)2

परिभाषा

व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से ही संभव होता है। इनके उच्चारण में वायु (हवा) मुख के किसी भाग (जीभ, तालु, दाँत आदि) से रगड़ खाकर या टकराकर बाहर निकलती है, यानी कि इसमें रुकावट होती है।

  • शुद्ध व्यंजन हमेशा हलंत (्) के साथ लिखे जाते हैं (जैसे: क्, ग्, प्)।

याद रखें: हिन्दी में मानक व्यंजनों की संख्या 33 है, जिसमें उत्क्षिप्त (2) और संयुक्त (4) को मिलाकर कुल 39-41 तक माने जाते हैं।


 व्यंजन के भेद (Types of Vyanjan)

व्यंजन को मुख्य रूप से चार भागों में बाँटा जाता है:

1. स्पर्श व्यंजन (Sparsh Vyanjan - Plosives)

  • परिभाषा: इनके उच्चारण में हवा मुख के अलग-अलग स्थानों (कंठ, तालु, मूर्धा, दाँत, ओष्ठ) को स्पर्श (Touch) करके बाहर निकलती है।
  • संख्या: 25 (क् वर्ग से लेकर म् वर्ग तक)।



2. अंतःस्थ व्यंजन (Antasth Vyanjan - Approximants)

  • परिभाषा: इनका उच्चारण स्वर और व्यंजन के बीच का होता है। हवा मुख के भीतर ही रहती है, और किसी भाग को पूर्ण रूप से स्पर्श नहीं करती।
  • संख्या: 4
  • उदाहरण: य, र, ल, व


3. ऊष्म व्यंजन (Ushma Vyanjan - Fricatives)

  • परिभाषा: इनके उच्चारण में वायु मुख से घर्षण (Friction) करती हुई या गर्मी (ऊष्मा) पैदा करती हुई निकलती है।
  • संख्या: 4
  • उदाहरण: श, ष, स, ह


4. उत्क्षिप्त व्यंजन (Utkshipt Vyanjan - Flap Sounds)

  • परिभाषा: इनके उच्चारण में जीभ झटके से ऊपर उठकर मूर्धा (Talatal) को छूती है और फिर तुरंत नीचे गिरती है।
  • संख्या: 2
  • उदाहरण: ड़, ढ़
  • विशेष नियम: ये दोनों वर्ण कभी भी किसी शब्द के शुरुआत में नहीं आते। (जैसे: 'डमरू' सही है, 'ड़मरू' गलत है, लेकिन 'सड़क' सही है।)


5. संयुक्त व्यंजन (Sanyukt Vyanjan - Compound Consonants)

  • परिभाषा: ये वे व्यंजन हैं जो दो भिन्न व्यंजनों के मेल से बनते हैं।
  • संख्या: 4
  • भेद व विच्छेद:
    • क्ष = क् + ष + अ
    • त्र = त् + र + अ
    • ज्ञ = ज् + ञ + अ
    • श्र = श् + र + अ

 

III. व्यंजन का विस्तृत वर्गीकरण - (Detailed Classification of Vyanjan)

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए व्यंजनों का और अधिक गहरा वर्गीकरण समझना ज़रूरी है।


1. उच्चारण में लगे प्रयत्न (हवा की मात्रा) के आधार पर

यह देखा जाता है कि व्यंजन के उच्चारण में साँस (हवा) कितनी मात्रा में बाहर निकलती है।

भेदपरिभाषानियम/पैटर्न
अल्पप्राण (Alp Pran)जिनके उच्चारण में कम हवा बाहर निकलती है और 'ह' जैसी ध्वनि नहीं आती।प्रत्येक वर्ग का पहला (1), तीसरा (3), और पाँचवा (5) व्यंजन।
महाप्राण (Maha Pran)जिनके उच्चारण में अधिक हवा बाहर निकलती है और 'ह' जैसी ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है।प्रत्येक वर्ग का दूसरा (2) और चौथा (4) व्यंजन।

उदाहरण:

  • क (अल्पप्राण)- ख (महाप्राण)
  • ग (अल्पप्राण) - घ (महाप्राण)
  • अल्पप्राण: क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म, य, र, ल, व।
  • महाप्राण: ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स, ह।


2. घोषत्व या कम्पन के आधार पर (Vibration in Voice Box)

इसका संबंध स्वर तंत्रियों (Vocal Cords) में होने वाले कंपन से है।

भेदपरिभाषानियम/पैटर्न
अघोष (Aghosh)जिनके उच्चारण में स्वर तंत्रियों में कंपन नहीं होता।प्रत्येक वर्ग का पहला (1) और दूसरा (2) व्यंजन, तथा श, ष, स।
घोष या सघोष (Ghosh/Sagosh)जिनके उच्चारण में स्वर तंत्रियों में कंपन होता है।प्रत्येक वर्ग का तीसरा (3), चौथा (4), और पाँचवा (5) व्यंजन, तथा य, र, ल, व, ह।



3. उच्चारण स्थान के आधार पर (Based on Pronunciation Place)

कौन-सा वर्ण बोलते समय मुख के किस भाग को स्पर्श करता है, यह वर्गीकरण बहुत महत्वपूर्ण है।

क्रमउच्चारण स्थान (Place)नाम (Classification)उदाहरण (वर्ण)
1कंठ (गला)कंठ्य (Kanthya)अ, आ, क, ख, ग, घ, ङ, विसर्ग (ः), ह
2तालु (जीभ का पिछला भाग)तालव्य (Talavya)इ, ई, च, छ, ज, झ, ञ, य, श
3मूर्धा (कठोर छत का अगला भाग)मूर्धन्य (Murdhanya)ऋ, ट, ठ, ड, ढ, ण, ष
4दाँत (दाँतों का पिछला भाग)दंत्य (Dantya)त, थ, द, ध, न, ल, स
5ओष्ठ (होंठ)ओष्ठ्य (Oshtya)उ, ऊ, प, फ, ब, भ, म
6दंत + ओष्ठदंतोष्ठ्य (Dantoshthya)व, फ़
7कंठ + तालुकंठतालव्यए, ऐ
8कंठ + ओष्ठकंठोष्ठ्यओ, औ

 

IV. Other Important Elements (अन्य महत्वपूर्ण तत्व)

वर्ण विचार में कुछ ऐसे चिह्न भी शामिल हैं जो न तो पूरी तरह स्वर हैं और न ही व्यंजन, लेकिन भाषा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


1. अयोगवाह (Aayogavah: Anuswar and Visarg)

ये वे ध्वनियाँ हैं जो न तो स्वर के साथ चलती हैं और न ही व्यंजन के साथ।

  • अनुस्वार (Anuswar -ं): इसका उच्चारण नाक से होता है। यह हमेशा व्यंजन के पहले आता है।
    • उदाहरण: संग, पंकज, बिंदु।
  • विसर्ग (Visarg -ः): इसका उच्चारण 'ह' की तरह होता है। यह सिर्फ संस्कृत से आए तत्सम शब्दों में प्रयोग होता है।
    • उदाहरण: अतःपुनःप्रायः



2. अनुनासिक (Anunasik -ँ)

  • परिभाषा: वह ध्वनि जिसके उच्चारण में हवा मुख और नाक दोनों से बाहर निकलती है। इसे चंद्र बिंदु (ँ) कहते हैं।
    • उदाहरण: हँसना, गाँवआँख
  • महत्वपूर्ण अंतर:
    • अनुस्वार (ं): केवल नाक से ध्वनि (जैसे: हंसपक्षी)
    • अनुनासिक (ँ): नाक और मुँह दोनों से ध्वनि (जैसे: हँसक्रिया)



3. नुक्ता (Nukta - The Dot)

  • परिभाषा: किसी व्यंजन के नीचे लगने वाला एक छोटा बिंदु। यह अरबी, फारसी और अंग्रेजी भाषाओं से आए शब्दों को सही ढंग से उच्चारित करने के लिए लगाया जाता है।
  • उदाहरण: ज़मीन, फ़कीर, अंग्रेज़ीक़लम।



4. हलंत (Halanth - ्)

  • परिभाषा: यह एक तिरछी रेखा है जो किसी व्यंजन के नीचे लगाई जाती है। इसका अर्थ है कि व्यंजन बिना स्वर के है, यानी शुद्ध व्यंजन है।
    • उदाहरण: क् (क नहीं), ल् (ल नहीं), त् (त नहीं)।
  • उपयोग: संयुक्त व्यंजन बनाने में (विद्या = वि + द् + या)

 


V. Varn-Sanyojan and Varn-Viched (वर्ण-संयोजन और वर्ण-विच्छेद)

वर्ण विचार को पूरी तरह समझने के लिए शब्दों को तोड़ना और जोड़ना आना चाहिए।

1. वर्ण-विच्छेद (Varn-Viched: Breaking Down Varns)

किसी शब्द में प्रयुक्त वर्णों को अलग-अलग करके दिखाना वर्ण-विच्छेद कहलाता है। यह सबसे कठिन अभ्यास माना जाता है।

शब्दवर्ण-विच्छेद
कर्म (Karma)क् + अ + र् + म् + अ
श्रद्धा (Shraddha)श् + र् + अ + द् + ध् + आ
विज्ञान (Vigyan)व् + इ + ज् + ञ् + आ + न् + अ
पृष्ठ (Prishth)प् + ऋ + ष् + ठ् + अ
प्रयास (Prayas)प् + र् + अ + य् + आ + स् + अ
ज्योतिष (Jyotish)ज् + य् + ओ + त् + इ + ष् + अ



2. वर्ण-संयोजन (Varn-Sanyojan: Joining Varns)

वर्णों को जोड़कर शब्द बनाने की प्रक्रिया।

  • उदाहरण: क् + र् + अ + म् + अ = क्रम
  • उदाहरण: व् + य् + अ + क् + त् + इ = व्यक्ति

 



VI. Conclusion (निष्कर्ष) & Practice

हमने देखा कि वर्ण विचार केवल अक्षरों को याद करना नहीं है, बल्कि यह हिन्दी भाषा की पूरी वैज्ञानिक संरचना को समझना है। जिस विद्यार्थी को स्वर और व्यंजन के भेद, उच्चारण स्थान, अल्पप्राण-महाप्राण और घोष-अघोष की गहरी समझ है, वह हिन्दी व्याकरण के किसी भी प्रश्न में मात नहीं खा सकता। यह ज्ञान न सिर्फ आपको परीक्षाओं में अव्वल बनाएगा, बल्कि आपकी भाषा को भी शुद्ध और प्रभावी बनाएगा।

अब स्वयं को परखने का समय है!

 

अभ्यास प्रश्न (Self-Test)

  1. निम्नलिखित में से कौन-सा वर्ण मूर्धन्य और महाप्राण दोनों है? (क, घ, ट, )
  2. वर्ण 'ए' का निर्माण किन दो स्वरों के मेल से होता है?
  3. 'श्रम' शब्द का सही वर्ण-विच्छेद क्या है?
  4. ह्रस्व स्वर, दीर्घ स्वर और प्लुत स्वर किस आधार पर वर्गीकृत किए जाते हैं?
  5. 'दंतोष्ठ्य' वर्ण कौन-सा है? (क, य, र, )

 

उत्तरमाला:

  1. ठ (ट वर्ग का दूसरा, मूर्धन्य, और महाप्राण)
  2. अ + इ
  3. श् + र् + अ + म् + अ
  4. मात्रा या उच्चारण काल के आधार पर

 

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