हिंदी भाषा का विकास

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हिन्दी भाषा का विकास

हिन्दी भाषा भारतीय संस्कृति और सभ्यता की धड़कन है, जो न केवल संचार का माध्यम है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान, साहित्यिक धरोहर और सामाजिक चेतना का प्रतीक भी है। विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक, हिन्दी का विकास एक लम्बी, जटिल और रोचक ऐतिहासिक यात्रा का परिणाम है। इसके विकास का क्रम है—संस्कृत → पालि → प्राकृत → अपभ्रंश → हिन्दी। वैदिक संस्कृत से लेकर आधुनिक डिजिटल युग तक, हिन्दी ने अनेक परिवर्तनों, सांस्कृतिक संघर्षों और भाषायी संक्रमणों को सहते हुए अपना वर्तमान स्वरूप ग्रहण किया है।

भारत में आज लगभग 52 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी को मातृभाषा के रूप में बोलते हैं, और वैश्विक स्तर पर यह विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इस व्यापक प्रसार के पीछे हिन्दी का समृद्ध इतिहास, लचीली प्रकृति और सांस्कृतिक आकर्षण निहित है। इस लेख में हम हिन्दी भाषा के विकास की संपूर्ण यात्रा को कालक्रमानुसार प्रस्तुत करेंगे।


भाषा विकास का कालक्रम: संस्कृत से हिन्दी तक

भारतीय भाषाओं के विकास को समझने के लिए हमें एक स्पष्ट कालक्रमिक प्रवाह को समझना होगा:

काल

भाषा

स्थिति

प्रमुख क्षेत्र

साहित्य/अवदान

1500–500 .पू.

वैदिक संस्कृत

धार्मिक एवं दैविक भाषा

सम्पूर्ण भारत

वेद, उपनिषद

500 .पू.–200 .

लौकिक संस्कृत

परिष्कृत, मानकीकृत

पूरे भारत में पढ़ी-लिखी भाषा

महाभारत, रामायण, काव्य

500 .पू.–100 .

पालि

मागधी प्राकृत की शाखा, बौद्ध धर्म की भाषा

बिहार, मगध क्षेत्र

त्रिपिटक, जातक कथाएँ

500 .–1000 .

प्राकृत भाषाएँ (शौरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी)

जनसाधारण की भाषा

विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र

नाटक, काव्य, साहित्य

600–1200 .

अपभ्रंश

प्राकृत का विकसित, संक्रमणकालीन रूप

पूरे भारत में

डोहा, कविता, जैन साहित्य

1200–1500 .

आदिकालीन हिन्दी

खड़ी बोली, ब्रज, अवधी का उदय

उत्तर भारत मुख्यतः

पृथ्वीराज रासो, खुसरो की रचनाएँ

1500–1800 .

भक्तिकालीन हिन्दी

ब्रज, अवधी का साहित्यिक परिपक्व रूप

उत्तर भारत

तुलसी, सूरदास, कबीर, मीरा

1800–1900 .

आधुनिक हिन्दी

खड़ी बोली का प्रतिष्ठा

पूरे भारत में

पत्रकारिता, गद्य साहित्य

1900–वर्तमान

समकालीन हिन्दी

राजभाषा, साहित्य, विज्ञान, तकनीक

सर्वत्र

समस्त आधुनिक विधाएँ





संस्कृत काल और भाषा का उद्भव

वैदिक संस्कृत (1500–500 .पू.)

वैदिक संस्कृत भारत-यूरोपीय (Indo-Aryan) भाषा परिवार की सबसे प्राचीन और पवित्र भाषा है। इसका साहित्यिक इतिहास लगभग तीन हजार वर्ष पुराना है। वैदिक काल में संस्कृत की विशेषता इसकी ध्वन्यात्मक विविधता, जटिल व्याकरण और धार्मिक पवित्रता थी। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में प्रयुक्त यह भाषा अनुष्ठान, मंत्रोच्चार और आध्यात्मिक चिंतन के लिए अनुकूल थी।

वैदिक संस्कृत में समृद्ध विभक्ति प्रणाली, लचीली क्रिया-व्यवस्था और छांदोगत लोच पाई जाती है। उदाहरण के लिए, वैदिक संस्कृत में प्रथम विभक्ति बहुवचन में 'देवासः' और 'देवाः' दोनों रूप मिलते हैं, जबकि लौकिक संस्कृत में केवल 'देवाः' का प्रयोग होता है।


लौकिक संस्कृत
(500 .पू.–200 .)

लौकिक संस्कृत वैदिक संस्कृत के बाद विकसित हुई और यह सामान्य जनों द्वारा बोली जाने वाली परिष्कृत भाषा थी। इस काल में संस्कृत का विस्तार धार्मिक ग्रंथों से बाहर निकलकर महाकाव्य, नाटक, कविता, पुराण और दर्शन तक हुआ ।

लौकिक संस्कृत की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसका व्याकरणिक मानकीकरण था, जो तीन महान् आचार्यों—पाणिनि, कात्यायन और पतञ्जलि—के योगदान से संभव हुआ:

  • पाणिनि (500 .पू.): उन्होंने अष्टाध्यायी की रचना की, जो 4,000 सूत्रों में संस्कृत व्याकरण को बद्धमूल करती है।

  • कात्यायन (350 .पू.): उन्होंने वार्तिक लिखी, जिसमें पाणिनि के सूत्रों की विस्तृत व्याख्या है।

  • पतञ्जलि (200 .पू.): उन्होंने महाभाष्य लिखा, जो संस्कृत व्याकरण का दार्शनिक विवेचन प्रस्तुत करता है।


पालि भाषा: बौद्ध धर्म और लोकभाषा का संगम

पालि (500 .पू.–100 .) एक अत्यंत महत्वपूर्ण भाषा है, जिसे अक्सर भाषा विकास के इतिहास में नजरअंदाज कर दिया जाता है। पालि मूलतः मागधी प्राकृत की एक प्रमुख शाखा है, जो गौतम बुद्ध के समय (500 .पू.) में मगध (आधुनिक बिहार) क्षेत्र में बोली जाती थी।


पालि का महत्व और प्रसार

पालि को "बौद्धों की संस्कृत" भी कहा जाता है क्योंकि यह बौद्ध धर्म का मुख्य साहित्यिक माध्यम बना। त्रिपिटक (सुत्तपिटक, विनयपिटक, अभिधम्मपिटक) जैसे बौद्ध धर्मग्रंथ पालि में लिखे गए। पालि साहित्य में जातक कथाएँ, नीतिशास्त्र, धर्म-दर्शन और लोकरंजन की समृद्ध परंपरा है।

पालि की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह लोकभाषा और साहित्यिक परंपरा का सुंदर संगम है। जहाँ संस्कृत पंडितों और ब्राह्मणों की भाषा थी, वहीं पालि आम बौद्ध भिक्षुओं और जनता की भाषा थी। इससे बौद्ध धर्म का प्रसार भारत से बाहर श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड और दक्षिण-पूर्व एशिया तक हुआ।


पालि की भाषायी विशेषताएँ

पालि में संस्कृत की कठोर विभक्तियाँ सरल हुईं। उदाहरण:

  • संस्कृतगच्छति (जाता है) → पालिगच्छति (सरलीकृत रूप)

  • संस्कृतकरोति (करता है) → पालिकरोति (लोकरूप)

पालि में नकारात्मक वाक्य संरचना, सामान्य विवरण और सहज उच्चारण के कारण यह जनसाधारण के लिए अधिक सुलभ था।


पालि से अपभ्रंश का सेतु

पालि का अपभ्रंश में प्रत्यक्ष प्रभाव देखा जा सकता है। अनेक पालि शब्द अपभ्रंश के माध्यम से आधुनिक भारतीय भाषाओं में आए हैं:

पालि

अपभ्रंश

आधुनिक हिन्दी

अर्थ

पुप्फ

फुल्ल

फूल

Flower

दुक्ख

दुक्ख / दुःख

दुःख

Sorrow

ज्ञान

ञान

ज्ञान

Knowledge

सद्धा

सद्दा

सद्दा / विश्वास

Faith



प्राकृत और अपभ्रंश युग: लोकभाषाओं का उत्थान

प्राकृत भाषाएँ (500 .–1000 .)

संस्कृत और पालि की जटिलता के कारण, जनसाधारण में प्राकृत भाषाएँ विकसित होने लगीं। प्राकृत का अर्थ है 'प्राकृतिक' या 'स्वाभाविक' अर्थात् लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा।

प्राकृत की मुख्य किस्में थीं:

1. शौरसेनी प्राकृत: मथुरा और शूरसेन जनपद में बोली जाती थी। इससे ही ब्रजभाषा, खड़ी बोली और पश्चिमी हिन्दी का विकास हुआ।

2. महाराष्ट्री प्राकृत: महाराष्ट्र की भाषा, जिसे काव्य का सबसे सुंदर रूप माना जाता था। इससे मराठी विकसित हुई।

3. मागधी प्राकृत: मगध क्षेत्र की भाषा, जिससे पूर्वी भारतीय भाषाएँ (बांग्ला, ओड़िया, असमिया) विकसित हुईं।

प्राकृत साहित्य में गाथा सप्तशती, मृच्छकटिकम् जैसे ग्रंथ और अनेक नाटक रचे गए।


अपभ्रंश: आधुनिक भाषाओं की जन्मभूमि (600–1200 .)

अपभ्रंश (लगभग 600-1200 .) प्राकृत का अगला विकसित रूप था। इसमें संस्कृत की विभक्तियाँ लगभग लुप्त हो गईं और परसर्गों (postpositions) का प्रयोग शुरू हुआ।

अपभ्रंश में शब्दों का परिवर्तन देखिए:



संस्कृत

प्राकृत

अपभ्रंश

हिन्दी

गच्छति

गच्छइ

जाइ / जाउ

जाता है

करोति

करेइ

करइ / करै

करता है

हस्त:

हत्थ

हत्थ / हाथ

हाथ

स्वप्न:

सुविण

सुपिन / सोवन

सपना

पुत्र:

पुत्त

पुत्त / पूअ

पुत्र

अपभ्रंश के प्रमुख साहित्यकार—विद्यापति, स्वयंभू, धनपाल—थे। पद्मावत जैसे महान् ग्रंथ अपभ्रंश में ही रचे गए।


प्रारंभिक हिन्दी: आदिकाल (10वीं–14वीं शताब्दी)

10वीं से 14वीं शताब्दी तक का काल आदिकाल या वीरगाथा काल कहलाता है। इसी काल में अपभ्रंश से विकसित होकर खड़ी बोली, ब्रजभाषा और अवधी का प्रारंभिक स्वरूप उभरा।


आदिकाल के प्रमुख कवि

चंदबरदाई (1148–1192 .): हिन्दी के प्रथम महाकवि। उनकी पृथ्वीराज रासो हिन्दी का पहला महाकाव्य है, जो डिंगल और पिंगल का मिश्रण है।

अमीर खुसरो (1253–1325 .): फारसी-हिन्दी मिश्रित भाषा के प्रवर्तक। उन्होंने खड़ी बोली में पहेलियाँ और मुकरियाँ लिखीं, जो जनप्रिय हुईं।

विद्यापति (1350–1450 .): अवहट्ट और मैथिली के कवि, जिन्होंने प्रेम और भक्ति काव्य लिखे।

इस काल में फारसी और अरबी शब्दों का हिन्दी में प्रवेश हुआ—दस्तावेज़, तख़्त, खबर, कलम आदि।


भक्तिकाल: हिन्दी का स्वर्णयुग (14वीं–17वीं शताब्दी)

भक्तिकाल (1350–1650 .) हिन्दी साहित्य का सबसे समृद्ध काल है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे "हिन्दी का स्वर्णयुग" कहा है। इस काल में हिन्दी की सभी बोलियाँ—ब्रज, अवधी, राजस्थानी—साहित्यिक परिपक्वता को प्राप्त हुईं।


भक्तिकाल की धाराएँ

निर्गुण भक्ति: कबीर, दादू, रैदास (गुणातीत ईश्वर की उपासना)
सगुण भक्ति: तुलसीदास, सूरदास, मीरा (साकार ईश्वर की उपासना)


भक्तिकाल के महान कवि

कबीरदास (1398–1518 .): निर्गुण भक्ति के कवि, सधुक्कड़ी भाषा में रचनाएँ।

तुलसीदास (1532–1623 .)रामचरितमानस के रचयिता, अवधी भाषा का गौरव, भाषा समन्वयक।

सूरदास (1478–1583 .): ब्रजभाषा के अद्वितीय कविसूरसागर के रचयिता।

मीराबाई (1498–1547 .): कृष्ण भक्ति की प्रेम और विरह की प्रतीक।


रीतिकाल और आधुनिक युग (17वीं–19वीं शताब्दी)

रीतिकाल (1650–1850 .) में काव्यशास्त्र, अलंकार और श्रृंगार रस की प्रधानता थी। केशवदास, बिहारी, घनानंद इसके प्रमुख कवि हैं।

19वीं शताब्दी में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने आधुनिक हिन्दी का जन्म दिया। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने खड़ी बोली को परिष्कृत करके साहित्य और पत्रकारिता की भाषा बनाया।


स्वाधीनता आन्दोलन और राष्ट्रभाषा का दर्जा

महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, पंडित नेहरू और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित किया। 26 जनवरी 1950 को लागू हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343–351 में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।


वर्तमान परिदृश्य: डिजिटल युग में हिन्दी

21वीं सदी में हिन्दी को डिजिटल माध्यमों में अभूतपूर्व विस्तार मिला है। यूट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सऐप, सोशल मीडिया पर हिन्दी कंटेंट की भारी माँग है। Hinglish (हिंग्लिश) युवा पीढ़ी में तेजी से फैल रहा है।

भारत में 85 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से 44% हिन्दी भाषा में कंटेंट का उपभोग करते हैं। Google Pay, UPI, -कॉमर्स और EdTech प्लेटफॉर्म्स पर हिन्दी का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है।

हिन्दी अब नेपाल, मॉरीशस, फिजी, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम सहित विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा बन चुकी है।


निष्कर्ष

हिन्दी भाषा का विकास—संस्कृत → पालि → प्राकृत → अपभ्रंश → हिन्दी—यह एक 3,000 वर्षीय भाषायी यात्रा है। हर काल में हिन्दी ने अपने आपको समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला। आज हिन्दी केवल भारत की राजभाषा ही नहीं, बल्कि विश्व की सबसे गतिशील और समावेशी भाषा है।

यदि डिजिटल साक्षरता, तकनीकी शब्दावली का विकास और वैश्विक प्रचार-प्रसार जारी रहे, तो हिन्दी अवश्य ही विश्व की सबसे प्रभावशाली भाषाओं में से एक बन जाएगी।


[
हिन्दी भाषा का विकास, संस्कृत से हिन्दी, पालि प्राकृत अपभ्रंश, हिन्दी का इतिहास, भाषा विकास क्रम ]


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