समास (Samas) – परिभाषा , भेद एवं उदाहरण

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समास (Samas) – परिभाषा , भेद एवं उदाहरण, samas in hindi grammar

समास (Samas) – परिभाषा , भेद एवं उदाहरण 


परिचय

समास हिंदी व्याकरण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है जो भाषा की सुंदरता और संक्षिप्तता को बढ़ाता है। यह भाषा को सरल, प्रभावशाली और अर्थपूर्ण बनाने का एक अमूल्य साधन है। समास का अध्ययन न केवल हिंदी साहित्य की समझ को गहरा करता है, बल्कि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी अत्यधिक सहायक है।

समास की परंपरा संस्कृत व्याकरण से आई है। महर्षि पाणिनि की अष्टाध्यायी में समास के नियम विस्तार से दिए गए हैं। पाणिनि के सूत्र "समर्थः पदविधिः" के अनुसार सामर्थ्य संबंध वाले पदों का समास होता है।


समास की परिभाषा (Defiition of Samas)

शाब्दिक अर्थ

समास शब्द 'सम् + आस' के योग से बना है, जहाँ 'सम्' का अर्थ है 'पास' और 'आस' का अर्थ है 'रखना'। इस प्रकार समास का शाब्दिक अर्थ है 'संक्षिप्तीकरण' या 'संक्षेप'।

परंपरागत परिभाषा

पंडित कामता प्रसाद गुरु के अनुसार: **"दो या दो से अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर संबंध बताने वाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतंत्र शब्द बनता है, उस शब्द को सामासिक शब्द कहते हैं और उन दो या अधिक शब्दों का जो संयोग होता है उसे समास कहा जाता है"।


आधुनिक परिभाषा

जब दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक नया और छोटा शब्द बनाते हैं, जिससे कम शब्दों में अधिक अर्थ व्यक्त हो सके, तो उसे समास कहते हैं।

उदाहरण:

राजा का पुत्र = राजपुत्र

रसोई के लिए घर = रसोईघर

गंगा का जल = गंगाजल


समास की विशेषताएं

समास की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं हैं:

कम से कम दो पदों की आवश्यकता: समास कम से कम दो शब्दों के योग से बनता है

विभक्ति प्रत्ययों का लोप: समस्त पद में कारक चिह्नों का लोप हो जाता है

संक्षिप्तीकरण: अधिक अर्थ को कम शब्दों में व्यक्त करना

नवीन शब्द निर्माण: दो या अधिक शब्दों से एक नया सार्थक शब्द बनता है

विग्रह की संभावना: समस्त पदों को खंडों में विभाजित करके संबंध स्पष्ट करना संभव होता है


पूर्वपद और उत्तरपद

समास में दो पद होते हैं:

पूर्वपद: पहला पद

उत्तरपद: दूसरा पद

उदाहरण: गंगाजल में 'गंगा' पूर्वपद और 'जल' उत्तरपद है।


समास के प्रकार (Types of Samas)

हिंदी व्याकरण में समास के छह मुख्य प्रकार हैं:

अव्ययीभाव समास (Avyayibhava Samas)

तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)

द्विगु समास (Dvigu Samas)

द्वंद्व समास (Dvandva Samas)

कर्मधारय समास (Karmadharaya Samas)

बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi Samas)


1. अव्ययीभाव समास (Avyayibhava Samas)

परिभाषा

जिस समास में प्रथम पद अव्यय हो और समस्त पद क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।


अव्यय क्या है?

अव्यय शब्द का शाब्दिक अर्थ है "जो व्यय न हो" या "जिसका क्षय न हो" अर्थात  अव्यय उन शब्दों को कहते हैं जिनके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये शब्द हमेशा अपने मूल रूप में बने रहते हैं और वाक्य की किसी भी स्थिति में अपरिवर्तित रहते हैं।

अव्यय के उदाहरण

सामान्य अव्यय शब्द: जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य, अर्थात आदि।


व्यावहारिक उदाहरण

उदाहरण 1: "बहुत" शब्द का प्रयोग

  • निधि बहुत काम करती है
  • राजेश बहुत हंसता है

यहाँ "बहुत" शब्द लिंग, वचन और काल बदलने पर भी अपरिवर्तित रहा है।

उदाहरण 2: "धीरे-धीरे" शब्द का प्रयोग

  • एक लड़का धीरे-धीरे चल रहा है
  • एक लड़की धीरे-धीरे चल रही है

यहाँ भी "धीरे-धीरे" शब्द में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।


अव्ययीभाव समास की विशेषताएं

प्रथम पद (पूर्वपद) प्रधान होता है

समस्त पद अव्यय के समान व्यवहार करता है

लिंग, वचन, कारक के अनुसार इसमें परिवर्तन नहीं होता


प्रमुख उपसर्ग

अव्ययीभाव समास में निम्न उपसर्गों का प्रयोग होता है: आ, प्रति, यथा, निः, सह, अनुसार, भर, बे आदि।


उदाहरण

समस्त पदविग्रहअर्थ
प्रतिदिनप्रत्येक दिनहर रोज
यथाशक्तिशक्ति के अनुसारअपनी क्षमता के अनुसार
आजन्मजन्म से मृत्यु तकजीवन भर
भरपेटपेट भरकरपूरा पेट भरकर
बेखौफबिना खौफ केनिडर होकर
निर्भयबिना भय केनिडर
यथासमयसमय के अनुसारउचित समय पर
प्रत्यक्षआंखों के सामनेसीधे देखकर

 

अव्ययीभाव समास के भेद

अव्यय पद पूर्व अव्ययीभाव समास: प्रथम पद अव्यय, द्वितीय पद संज्ञा

कर्मधारय समास सदृश अव्ययीभाव समास: प्रथम पद विशेषण, द्वितीय पद संज्ञा


2. तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)

परिभाषा

जिस समास में उत्तरपद की प्रधानता हो और दोनों पदों के बीच से कारक चिह्न का लोप हो जाए, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।


विशेषताएं

उत्तरपद प्रधान होता है

पूर्वपद गौण होता है

विभक्ति प्रत्ययों का लोप होता है

कर्ता और संबोधन कारक को छोड़कर अन्य सभी कारक प्रयुक्त होते हैं

तत्पुरुष समास के भेद (कारक के आधार पर)

1. कर्म तत्पुरुष समास

कर्म कारक चिह्न 'को' का लोप होता है।

स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त

गगनचुंबी = गगन को चूमने वाला

माखनचोर = माखन को चुराने वाला

ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ

2. करण तत्पुरुष समास

करण कारक चिह्न 'से', 'के द्वारा' का लोप होता है।

मदांध = मद से अंध

रेखांकित = रेखा से अंकित

हस्तलिखित = हाथ से लिखित

कष्टसाध्य = कष्ट से साध्य

3. संप्रदान तत्पुरुष समास

संप्रदान कारक चिह्न 'के लिए' का लोप होता है।

यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला

देवबलि = देव के लिए बलि

राहखर्च = राह के लिए खर्च

डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी

4. अपादान तत्पुरुष समास

अपादान कारक चिह्न 'से' (अलग होने के अर्थ में) का लोप होता है।

कामचोर = काम से जी चुराने वाला

दूरागत = दूर से आगत

रणविमुख = रण से विमुख

नेत्रहीन = नेत्र से हीन

5. संबंध तत्पुरुष समास

संबंध कारक चिह्न 'का', 'की', 'के' का लोप होता है।

गंगाजल = गंगा का जल

राजपुत्र = राजा का पुत्र

देशरक्षा = देश की रक्षा

चंद्रोदय = चंद्रमा का उदय

6. अधिकरण तत्पुरुष समास

अधिकरण कारक चिह्न 'में', 'पर' का लोप होता है।

गृहप्रवेश = गृह में प्रवेश

वनवास = वन में वास

लोकप्रिय = लोक में प्रिय

आपबीती = आप पर बीती

7. नञ् तत्पुरुष समास

पहला पद नकारात्मक होता है।

असत्य = न सत्य

अधर्म = न धर्म

अनाथ = न नाथ

अज्ञान = न ज्ञान


3. द्विगु समास (Dvigu Samas)

परिभाषा

जिस समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण हो और समस्त पद समूह या समाहार का अर्थ प्रदान करे, उसे द्विगु समास कहते हैं।

विशेषताएं

प्रथम पद संख्यावाचक होता है

द्वितीय पद (उत्तरपद) प्रधान होता है

समाहार या समूह का बोध होता है

तत्पुरुष समास का ही एक भेद है


द्विगु समास के भेद

समाहार द्विगु समास: त्रिलोक (तीन लोकों का समाहार)

उत्तरपद प्रधान द्विगु समास: दुमाता (दो माताओं का)


उदाहरण

समस्त पदविग्रहअर्थ
चौराहाचार राहों का समाहारचार रास्तों का मिलन स्थल
पंचतंत्रपांच तंत्रों का समाहारपांच नीति ग्रंथों का संग्रह
त्रिलोकतीन लोकों का समाहारतीनों लोक
सप्ताहसात दिनों का समूहसात दिन
शताब्दीसौ वर्षों का समाहारसौ साल
नवरत्ननौ रत्नों का समूहनौ श्रेष्ठ व्यक्ति या वस्तु
पंचवटीपांच वटों का समाहारपांच बरगद के पेड़ों का स्थान
अष्टाध्यायीआठ अध्यायों का समाहारपाणिनि का व्याकरण ग्रंथ

 

4. द्वंद्व समास (Dvandva Samas)

परिभाषा

जिस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर 'और', 'अथवा', 'या', 'एवं' योजक शब्द लगाते हैं, उसे द्वंद्व समास कहते हैं।


विशेषताएं

दोनों पद प्रधान होते हैं

योजक शब्दों ('और', 'या', 'अथवा') का लोप होता है

दोनों पदों का समान महत्व होता है

द्वंद्व समास के भेद

1. इतरेतर द्वंद्व समास

जब दोनों पदों का अर्थ अलग-अलग होता है।

माता-पिता = माता और पिता

दिन-रात = दिन और रात

सुख-दुख = सुख और दुख

आना-जाना = आना और जाना

पढ़ना-लिखना = पढ़ना और लिखना

2. समाहार द्वंद्व समास

जब दोनों पदों का अर्थ मिलकर एक समूह बनाते हैं या पहले पद से मिलता-जुलता दूसरा पद हो।

फल-फूल = फल, फूल आदि

कपड़े-लत्ते = कपड़े, लत्ते आदि

जी-जान = जी, जान आदि

धन-दौलत = धन, दौलत आदि

काम-काज = काम, काज आदि

3.संख्यावाचक द्वंद्व समास

एक से सौ तक की सभी अपूर्ण संख्याएं इतरेतर द्वंद्व समास होती हैं:

सोलह = दस और छह

अठारह = दस और आठ

चौसठ = साठ और चार

छियासी = अस्सी और छह


5. कर्मधारय समास (Karmadharaya Samas)

परिभाषा

जिस समास में प्रथम पद विशेषण और द्वितीय पद विशेष्य हो, अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं।

पहचान

विग्रह करने पर 'के समान', 'है जो', 'रूपी' आदि शब्द आते हैं।


उदाहरण

महाविद्यालय = महान है जो विद्यालय

नीलकमल = नीला है जो कमल

परमानंद = परम है जो आनंद

महादेव = महान हैं जो देव

चंद्रमुख = चंद्र के समान मुख


6. बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi Samas)

परिभाषा

जिस समास में कोई भी पद प्रधान न हो, बल्कि दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद (व्यक्ति, वस्तु या स्थान) का बोध कराते हों, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।


विशेषताएं

कोई भी पद प्रधान नहीं होता

तृतीय पद प्रधान होता है

विग्रह में 'वाला', 'है', 'जो', 'जिसका', 'जिसकी', 'जिसके', 'वह' आदि शब्द आते हैं


बहुव्रीहि समास के भेद

समानाधिकरण बहुव्रीहि समास: दशानन (दस मुख वाला - रावण)

तुल्ययोग बहुव्रीहि समास: धनद (धन देने वाला - कुबेर)

व्याधिकरण बहुव्रीहि समास: देशभक्त (देश का भक्त)

प्रादी बहुव्रीहि समास: अल्पायु (थोड़ी आयु वाला)

व्यतिहार बहुव्रीहि समास: शत्रुघ्न (शत्रुओं को मारने वाला)


उदाहरण

समस्त पदविग्रहअर्थ
चतुर्भुजचार भुजाओं वालाविष्णु
त्रिनेत्रतीन नेत्र वालाशिव
गजाननगज का आनन वालागणेश
पीताम्बरपीले वस्त्र वालाकृष्ण
नीलकंठनीला है कंठ जिसकाशिव
दशाननदश आनन वालारावण
वीणापाणीवीणा है हाथ में जिसकेसरस्वती
चक्रधरचक्र धारण करने वालाविष्णु

 

समास और संधि में अंतर

समास और संधि दोनों हिंदी व्याकरण के महत्वपूर्ण अंग हैं, लेकिन इनमें स्पष्ट अंतर है:

विशेषतासंधिसमास
मूल तत्वदो अक्षरों का मेलदो शब्दों का मेल
तोड़ने की प्रक्रियासंधि विच्छेदसमास विग्रह
प्रकारतीन प्रकार की होती हैछह प्रकार का होता है
वर्ण परिवर्तनवर्णों के योग से परिवर्तन हो सकता हैऐसा नहीं होता
प्रयोग क्षेत्रकेवल तत्सम पदों मेंसभी प्रकार के पदों में
विभक्तिविभक्ति का लोप नहीं होताविभक्ति का लोप हो सकता है

 

समास की महत्ता

हिंदी साहित्य में महत्व

भाषा की संक्षिप्तता: कम शब्दों में अधिक अर्थ की अभिव्यक्ति

काव्य सौंदर्य: छंद और लय में सहायक

शब्द भंडार का विस्तार: नए शब्दों का निर्माण

अर्थ गाम्भीर्य: गहन अर्थ की प्रस्तुति


समास पहचानने की तकनीकें

व्यावहारिक सुझाव

विग्रह करके देखें: समस्त पद को तोड़कर देखें कि कौन सा योजक शब्द आता है

प्रधानता की जांच: कौन सा पद प्रधान है

कारक चिह्न की पहचान: कौन सा कारक छुपा हुआ है

संख्या की उपस्थिति: प्रथम पद में संख्या है या नहीं

अव्यय की जांच: प्रथम पद अव्यय है या नहीं


सामान्य त्रुटियां और उनके समाधान

त्रुटि 1: द्विगु और कर्मधारय समास में भ्रम

गलत: चतुर्भुज को द्विगु समास मानना
सही: चतुर्भुज बहुव्रीहि समास है (चार भुजाओं वाला)

त्रुटि 2: तत्पुरुष और कर्मधारय में भ्रम

गलत: नीलकमल को तत्पुरुष समास मानना
सही: नीलकमल कर्मधारय समास है (नीला है जो कमल)

त्रुटि 3: बहुव्रीहि की गलत पहचान

गलत: दशानन को द्विगु समास मानना
सही: दशानन बहुव्रीहि समास है (दस मुख वाला - रावण)


समास के व्यावहारिक उदाहरण

दैनिक जीवन में प्रयुक्त समासिक शब्द

घरेलू शब्द

रसोईघर (संप्रदान तत्पुरुष)

स्नानघर (संप्रदान तत्पुरुष)

सोफासेट (द्वंद्व)

खाना-पीना (द्वंद्व)

शिक्षा क्षेत्र

पाठशाला (संप्रदान तत्पुरुष)

विद्यालय (संप्रदान तत्पुरुष)

अध्यापक (अधिकरण तत्पुरुष)

छात्रावास (संप्रदान तत्पुरुष)


समास हिंदी व्याकरण का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और व्यावहारिक विषय है। इसका सही ज्ञान न केवल भाषा की शुद्धता बढ़ाता है, बल्कि साहित्य की गहरी समझ भी प्रदान करता है। प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से भी समास का अध्ययन अत्यधिक उपयोगी है।

समास के छह प्रकारों में से प्रत्येक की अपनी विशेषताएं और नियम हैं। इन्हें समझकर और नियमित अभ्यास करके हम समासिक शब्दों की सही पहचान कर सकते हैं। भाषा की सुंदरता और प्रभावशीलता बढ़ाने में समास का योगदान अतुलनीय है।

आज के युग में जब भाषा का सरलीकरण हो रहा है, समास की परंपरा हमारी भाषा की समृद्धि को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अतः समास का गहन अध्ययन और व्यावहारिक प्रयोग हर हिंदी भाषी के लिए आवश्यक है।

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