संधि और संधि विच्छेद
(Sandhi and Sandhi Vichhed in Hindi Grammar)
प्रस्तावना (Introduction)
हिंदी व्याकरण में संधि एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है जो भाषा की शुद्धता और प्रवाहमयता को बनाए रखने में मुख्य भूमिका निभाता है। संधि का अध्ययन न केवल शुद्ध हिंदी लिखने और बोलने के लिए आवश्यक है, बल्कि इससे UPSC, UPPSC, SSC, CTET और विभिन्न स्कूल बोर्ड परीक्षाओं में भी महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे जाते हैं।
संधि का शाब्दिक अर्थ है 'मेल' या 'जोड़'। जब दो वर्ण आपस में मिलकर एक नया रूप धारण करते हैं, तो उसे संधि कहते हैं। इसके विपरीत, संधि से बने शब्दों को अलग करने की प्रक्रिया को संधि विच्छेद कहा जाता है।
संधि की परिभाषा (Definition of Sandhi)
प्रमुख हिंदी व्याकरणाचार्यों के अनुसार संधि की परिभाएं:
आचार्य किशोरीदास वाजपेयी के अनुसार:
"दो वर्णों के पास-पास आने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे संधि कहते हैं।"
पंडित कामताप्रसाद गुरु के अनुसार:
"संधि का अर्थ है मेल। दो ध्वनियों के मेल से जो तीसरी ध्वनि बनती है, उस मेल को संधि कहते हैं।"
डॉ. हरदेव बाहरी के अनुसार:
"दो वर्णों के मिलने से उनमें जो परिवर्तन होता है, वही संधि है।"
संधि के प्रकार (Types of Sandhi)
हिंदी व्याकरण में संधि के मुख्यतः तीन प्रकार हैं:
1. स्वर संधि (Swar Sandhi)
2. व्यंजन संधि (Vyanjan Sandhi)
3. विसर्ग संधि (Visarg Sandhi)
1. स्वर संधि (Swar Sandhi)
परिभाषा: जब दो स्वर आपस में मिलकर विकार उत्पन्न करते हैं तो उसे स्वर संधि कहते हैं।
स्वर संधि के उप-प्रकार:
A. दीर्घ संधि (Deergh Sandhi)
नियम: जब दो समान स्वर (ह्रस्व या दीर्घ) मिलते हैं तो दीर्घ स्वर बनता है।
सूत्र: अ + अ = आ, आ + अ = आ, आ + आ = आ
उदाहरण:
- देव + आलय = देवालय (अ + आ = आ)
- पुस्तक + आलय = पुस्तकालय (अ + आ = आ)
- राम + आयण = रामायण (अ + आ = आ)
- मत + अनुसार = मतानुसार (अ + अ = आ)
B. गुण संधि (Gun Sandhi)
नियम: अ/आ के साथ इ/ई मिले तो 'ए', उ/ऊ मिले तो 'ओ', ऋ मिले तो 'अर्' बनता है।
सूत्र:
- अ/आ + इ/ई = ए
- अ/आ + उ/ऊ = ओ
- अ/आ + ऋ = अर्
उदाहरण:
- महा + इंद्र = महेंद्र (आ + इ = ए)
- सुर + इंद्र = सुरेंद्र (अ + इ = ए)
- गंगा + ईश = गंगेश (आ + ई = ए)
- चंद्र + उदय = चंद्रोदय (अ + उ = ओ)
- महा + उत्सव = महोत्सव (आ + उ = ओ)
- देव + ऋषि = देवर्षि (अ + ऋ = अर्)
C. वृद्धि संधि (Vriddhi Sandhi)
नियम: अ/आ के साथ ए/ऐ मिले तो 'ऐ', ओ/औ मिले तो 'औ' बनता है।
सूत्र:
- अ/आ + ए/ऐ = ऐ
- अ/आ + ओ/औ = औ
उदाहरण:
- मत + ऐक्य = मतैक्य (अ + ऐ = ऐ)
- सदा + एव = सदैव (आ + ए = ऐ)
- तथा + एव = तथैव (आ + ए = ऐ)
- वन + औषधि = वनौषधि (अ + औ = औ)
- महा + औषध = महौषध (आ + औ = औ)
- परम + औषध = परमौषध (अ + औ = औ)
D. यण संधि (Yan Sandhi)
नियम: इ/ई, उ/ऊ, ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो वे क्रमशः य्, व्, र् बन जाते हैं।
सूत्र:
- इ/ई + स्वर = य् + स्वर
- उ/ऊ + स्वर = व् + स्वर
- ऋ + स्वर = र् + स्वर
उदाहरण:
- यदि + अपि = यद्यपि (इ + अ = य् + अ)
- अति + अधिक = अत्यधिक (इ + अ = य् + अ)
- सु + आगत = स्वागत (उ + आ = व् + आ)
- अनु + एषण = अन्वेषण (उ + ए = व् + ए)
- पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा (ऋ + आ = र् + आ)
- मधु + आलय = मध्वालय (उ + आ = व् + आ)
E. अयादि संधि (Ayadi Sandhi)
नियम: ए, ऐ, ओ, औ के बाद कोई स्वर आए तो ये क्रमशः अय्, आय्, अव्, आव् बन जाते हैं।
उदाहरण:
- ने + अन = नयन (ए + अ = अय् + अ)
- गै + अक = गायक (ऐ + अ = आय् + अ)
- पो + अन = पवन (ओ + अ = अव् + अ)
- पौ + अन = पावन (औ + अ = आव् + अ)
- चे + अन = चयन (ए + अ = अय् + अ)
- भौ + अक = भावक (औ + अ = आव् + अ)
2. व्यंजन संधि (Vyanjan Sandhi)
परिभाषा: जब व्यंजन के साथ व्यंजन या स्वर का मेल हो तो उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
व्यंजन संधि के मुख्य नियम:
A. स्पर्श व्यंजनों की संधि
नियम 1: यदि किसी वर्ग का पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा व्यंजन किसी वर्ग के पहले या तीसरे वर्ण के साथ मिले तो पहला व्यंजन अपने वर्ग के तीसरे वर्ण में बदल जाता है।
उदाहरण:
- वाक् + दान = वाग्दान (क् + द = ग् + द)
- सत् + गति = सद्गति (त् + ग = द् + ग)
- उत् + गम = उद्गम (त् + ग = द् + ग)
- सत् + चित् = सच्चित् (त् + च = च् + च)
- उत् + घाटन = उद्घाटन (त् + घ = द् + घ)
B. नासिक्य व्यंजनों की संधि
नियम: स्पर्श व्यंजनों से पहले यदि म् आए तो वह उस व्यंजन के वर्ग के अनुसार अनुस्वार या उसी वर्ग के नासिक्य में बदल जाता है।
उदाहरण:
- सम् + गम = संगम (म् + ग = ं + ग)
- सम् + चय = संचय (म् + च = ं + च)
- सम् + तोष = संतोष (म् + त = ं + त)
- सम् + पूर्ण = संपूर्ण (म् + प = ं + प)
- सम् + स्कार = संस्कार (म् + स = ं + स)
- सम् + रक्षण = संरक्षण (म् + र = ं + र)
C. सकार और षकार की संधि
नियम: इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ तथा क्, र् के बाद आने वाला स् ष् बन जाता है।
उदाहरण:
- अभि + सेक = अभिषेक (इ + स = इ + ष)
- सु + सुप्ति = सुषुप्ति (उ + स = उ + ष)
- वि + सम = विषम (इ + स = इ + ष)
- नि + सिद्ध = निषिद्ध (इ + स = इ + ष)
3. विसर्ग संधि (Visarg Sandhi)
परिभाषा: विसर्ग (:) के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से होने वाले परिवर्तन को विसर्ग संधि कहते हैं।
विसर्ग संधि के नियम:
A. विसर्ग का 'स्' में परिवर्तन
नियम: अ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद क्, ख्, प्, फ्, त्, थ् में से कोई व्यंजन हो तो विसर्ग स् बन जाता है।
उदाहरण:
- नम: + कार = नमस्कार (: + क = स् + क)
- अंत: + करण = अंतस्करण (: + क = स् + क)
- मन: + ताप = मनस्ताप (: + त = स् + त)
- तिर: + कार = तिरस्कार (: + क = स् + क)
- पुर: + कृत = पुरस्कृत (: + क = स् + क)
- वय: + क्रम = वयस्क्रम (: + क = स् + क)
B. विसर्ग का लोप
नियम: अ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद अ हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है।
उदाहरण:
- मन: + अनुकूल = मनोनुकूल (: + अ = ओ)
- यश: + अभिलाषा = यशोभिलाषा (: + अ = ओ)
- वय: + अवस्था = वयोवस्था (: + अ = ओ)
- तप: + अधिक = तपोधिक (: + अ = ओ)
- सर: + अज = सरोज (: + अ = ओ)
- पुर: + अहित = पुरोहित (: + अ = ओ)
संधि विच्छेद (Sandhi Vichhed)
संधि विच्छेद की परिभाषा
संधि विच्छेद का अर्थ है संधि को तोड़ना या अलग करना। संधि से बने शब्दों को उनके मूल रूप में अलग करने की प्रक्रिया को संधि विच्छेद कहते हैं।
संधि विच्छेद के नियम
1. स्वर संधि विच्छेद के नियम:
संधि प्रकार | संधि रूप | विच्छेद |
दीर्घ संधि | गंगारती | गंगा + आरती |
गुण संधि | महेंद्र | महा + इंद्र |
वृद्धि संधि | सदैव | सदा + एव |
यण संधि | अत्यधिक | अति + अधिक |
2. व्यंजन संधि विच्छेद के नियम:
संधि रूप | विच्छेद | नियम |
वाग्दान | वाक् + दान | क् + द = ग् + द |
संगम | सम् + गम | म् + ग = ं + ग |
अभिषेक | अभि + सेक | इ + स = इ + ष |
3. विसर्ग संधि विच्छेद के नियम:
संधि रूप | विच्छेद | नियम |
नमस्कार | नम: + कार | : + क = स् + क |
मनोनुकूल | मन: + अनुकूल | : + अ = ओ |
संधि विच्छेद के हल किए गए उदाहरण
उदाहरण 1: रामायण
- विच्छेद: राम + अयन
- संधि प्रकार: दीर्घ संधि (अ + अ = आ)
उदाहरण 2: सुरेंद्र
- विच्छेद: सुर + इंद्र
- संधि प्रकार: गुण संधि (अ + इ = ए)
उदाहरण 3: महोत्सव
- विच्छेद: महा + उत्सव
- संधि प्रकार: गुण संधि (आ + उ = ओ)
उदाहरण 4: अत्यधिक
- विच्छेद: अति + अधिक
- संधि प्रकार: यण संधि (इ + अ = य् + अ)
उदाहरण 5: स्वागत
- विच्छेद: सु + आगत
- संधि प्रकार: यण संधि (उ + आ = व् + आ)
उदाहरण 6: संस्कार
- विच्छेद: सम् + स्कार
- संधि प्रकार: व्यंजन संधि (म् + स = ं + स)
उदाहरण 7: उद्गम
- विच्छेद: उत् + गम
- संधि प्रकार: व्यंजन संधि (त् + ग = द् + ग)
उदाहरण 8: मनोहर
- विच्छेद: मन: + हर
- संधि प्रकार: विसर्ग संधि (: + ह = ओ + ह)
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण संधि शब्द
A. स्वर संधि के महत्वपूर्ण उदाहरण:
- परमात्मा = परम + आत्मा (दीर्घ संधि)
- देवर्षि = देव + ऋषि (गुण संधि)
- गिरीश = गिरि + ईश (दीर्घ संधि)
- यद्यपि = यदि + अपि (यण संधि)
- अन्वेषण = अनु + एषण (यण संधि)
B. व्यंजन संधि के महत्वपूर्ण उदाहरण:
- जगन्नाथ = जगत् + नाथ
- उज्ज्वल = उत् + ज्वल
- तत्समय = तत् + समय
- सत्संग = सत् + संग
- चिद्रूप = चित् + रूप
C. विसर्ग संधि के महत्वपूर्ण उदाहरण:
- पुरस्कार = पुर: + कार
- अंतर्ध्वनि = अंत: + ध्वनि
- मनस्ताप = मन: + ताप
- दु:खी = दु: + खी
- पयोधर = पय: + धर
संधि और संधि विच्छेद हिंदी व्याकरण के अत्यंत महत्वपूर्ण अंग हैं जो भाषा की शुद्धता और सौंदर्य को बढ़ाते हैं। इनका सही ज्ञान न केवल व्याकरण की समझ बढ़ाता है बल्कि शुद्ध हिंदी लिखने और बोलने में भी सहायक होता है।
इस लेख में वर्णित सभी नियम, उदाहरण और तकनीकें आपकी हिंदी व्याकरण की तैयारी को मजबूत बनाएंगी। नियमित अभ्यास और धैर्य के साथ आप संधि में निपुणता प्राप्त कर सकते हैं।