दीवाली पर निबंध

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दीवाली पर निबंध, essay on diwali

 
दीवाली पर निबंध

(Essay on Diwali in Hindi)

निबंध 1: दीवाली – प्रकाश का पर्व (1000 शब्द)

(विश्वविद्यालय स्तर और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए)


प्रस्तावना

भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष स्थान है। ये त्योहार केवल उत्सव नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर, जीवन-मूल्यों और आध्यात्मिक चेतना के संवाहक हैं। इन्हीं त्योहारों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और लोकप्रिय है दीवाली — प्रकाश का पर्व। कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व केवल दीयों की जगमगाहट नहीं, बल्कि मानव जीवन में आशा, विश्वास और नवीन ऊर्जा का संचार करने वाला महोत्सव है। दीवाली वह पर्व है जो अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य, और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का उद्घोष करता है।


पौराणिक और ऐतिहासिक प्रसंग

दीवाली के साथ अनेक पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाएँ जुड़ी हुई हैं। सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास पूर्ण करके लंकापति रावण का संहार करने के उपरांत माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने अपने प्रिय राजा के स्वागत में पूरी नगरी को दीपमालाओं से सजाया था। घी के दीये जलाए गए थे। तभी से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है।

दीवाली का संबंध देवी लक्ष्मी से भी जुड़ा है। मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के समय धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इसीलिए दीवाली की रात्रि को लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है। घर-घर में माँ लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है।

भगवान महावीर को भी इसी दिन निर्वाण की प्राप्ति हुई थी, जिससे जैन धर्म में दीवाली का अत्यधिक महत्व है। सिख धर्म में भी यह दिन पवित्र माना जाता है क्योंकि छठे गुरु हरगोविंद सिंह जी इसी दिन ग्वालियर के किले से मुक्त हुए थे।


दीवाली की तैयारियाँ और उत्सव की परंपरा

दीवाली की तैयारियाँ धनतेरस से ही आरंभ हो जाती हैं। लोग इस दिन बर्तन, आभूषण या कोई नई वस्तु खरीदते हैं। यह शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद छोटी दीवाली या नरक चतुर्दशी आती है, जिस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था।

मुख्य दीवाली के दिन घरों की साफ-सफाई और सजावट का विशेष ध्यान रखा जाता है। घर-आँगन को गोबर से लीपा जाता है, रंगोली बनाई जाती है, तोरण सजाए जाते हैं और दीप-मालाएँ सजाई जाती हैं। शाम को लक्ष्मी-गणेश की विधिवत पूजा होती है। घर के हर कोने में दीये जलाए जाते हैं। मिट्टी के छोटे-छोटे दीये घी या तेल से भरकर बाती जलाई जाती है। यह दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है — जैसे धरती ने तारों का श्रृंगार कर लिया हो।

बाजारों में विशेष रौनक होती है। मिठाई की दुकानों पर भीड़ उमड़ पड़ती है। लोग एक-दूसरे को मिठाइयाँ और उपहार देते हैं। पारंपरिक पकवान जैसे गुझिया, लड्डू, बर्फी, खीर आदि बनाए जाते हैं। रात्रि में आतिशबाजी का आयोजन होता है, यद्यपि अब पर्यावरण के दृष्टिकोण से इस पर नियंत्रण की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

दीवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है और उसके बाद भाई दूज का पर्व आता है, जो भाई-बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक है।


भारत की विविधता में दीवाली

भारत विविधताओं का देश है और यही विविधता दीवाली के उत्सव में भी दिखाई देती है। उत्तर भारत में राम की अयोध्या वापसी का उत्सव मनाया जाता है, तो बंगाल में माँ काली की पूजा होती है। दक्षिण भारत में नरकासुर वध का उत्सव प्रमुख है। पंजाब में बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में दीवाली पर नए व्यापारिक खाते खोले जाते हैं। इस प्रकार सभी प्रांतों में दीवाली की अपनी विशेषता है, लेकिन भावना एक है — प्रकाश, खुशी और एकता।


दीवाली का दार्शनिक और आध्यात्मिक आयाम

दीवाली केवल बाह्य उत्सव नहीं है, बल्कि इसका गहरा दार्शनिक और आध्यात्मिक अर्थ है। दीये का प्रकाश जीवन में ज्ञान और चेतना का प्रतीक है। जिस प्रकार एक छोटा सा दीया घोर अंधकार को दूर कर देता है, उसी प्रकार ज्ञान का एक किरण अज्ञान के अंधकार को समाप्त कर देती है।

भारतीय दर्शन में कहा गया है — "तमसो मा ज्योतिर्गमय" अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। दीवाली यही संदेश देती है कि हम अपने जीवन में नकारात्मकता, ईर्ष्या, द्वेष, लोभ और मोह के अंधकार को दूर करें। हम अपने भीतर की आत्म-ज्योति को जगाएँ।

रामायण में राम का रावण पर विजय केवल युद्ध नहीं, बल्कि धर्म का अधर्म पर, सत्य का असत्य पर, और संयम का अहंकार पर विजय का प्रतीक है। दीवाली हमें सिखाती है कि कितना भी घना अंधकार क्यों न हो, सत्य और धर्म की विजय अवश्यंभावी है।


सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

दीवाली केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यह पर्व समाज में एकता, सद्भाव और भाईचारा स्थापित करता है। इस दिन सभी वर्ग, जाति और धर्म के लोग मिलकर उत्सव मनाते हैं। पड़ोसियों और मित्रों के घर जाकर मिठाई बाँटी जाती है। पुरानी कड़वाहटें भूलाकर लोग एक-दूसरे को गले लगाते हैं।

दीवाली व्यापारिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस समय बाजारों में विशेष चहल-पहल होती है। लोग नए वस्त्र, बर्तन, आभूषण और उपहार खरीदते हैं। व्यापारी अपने नए खाते खोलते हैं। श्रमिकों और कर्मचारियों को बोनस दिया जाता है। इस प्रकार दीवाली आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ावा देती है।


पर्यावरणीय चुनौती और समाधान

आधुनिक समय में दीवाली के साथ एक बड़ी चुनौती जुड़ गई है — पर्यावरण प्रदूषण। आतिशबाजी से वायु और ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है। हर वर्ष दीवाली के बाद शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरनाक स्तर तक पहुँच जाता है। बुजुर्ग, बच्चे और श्वास रोगियों को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पालतू और आवारा पशु-पक्षी भी ध्वनि प्रदूषण से त्रस्त हो जाते हैं।

अब समय आ गया है कि हम पर्यावरण-संवेदनशील दीवाली मनाएँ। आतिशबाजी से बचें या सीमित मात्रा में करें। मिट्टी के पारंपरिक दीयों का उपयोग करें, जो स्थानीय कुम्हारों को रोजगार भी देता है। सोलर लाइट्स और LED का प्रयोग करें। प्लास्टिक की सजावट के स्थान पर प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करें। गरीबों और जरूरतमंदों को दान दें, जिससे दीवाली की वास्तविक रोशनी समाज के हर वर्ग तक पहुँचे।


उपसंहार

दीवाली केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक दर्शन है। यह हमें सिखाती है कि अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, एक छोटा सा दीया उसे दूर कर सकता है। यह हमें प्रेरणा देती है कि हम अपने जीवन से नकारात्मकता को निकालकर सकारात्मकता भरें। हम अपने भीतर के अहंकार, लोभ और द्वेष को जलाकर प्रेम, करुणा और सद्भाव का दीया जलाएँ।

दीवाली का वास्तविक उद्देश्य तभी पूर्ण होगा जब हम केवल अपने घरों को ही नहीं, बल्कि अपने मन और समाज को भी प्रकाशित करें। जब गरीब की झोंपड़ी में भी खुशी का दीया जलेगा, जब हम पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होंगे, जब हम एक-दूसरे के प्रति सद्भावना रखेंगे — तभी दीवाली की सच्ची रोशनी फैलेगी।

आइए, इस दीवाली हम संकल्प लें कि हम अपने जीवन में ऐसे दीये जलाएँगे जो कभी बुझे नहीं — ज्ञान का दीया, करुणा का दीया, सत्य का दीया, और मानवता का दीया। तभी हम कह सकेंगे कि हमने दीवाली का वास्तविक अर्थ समझा है।

"दीपो नमः सत्यनारायणः" — दीपक को नमस्कार, सत्य को नमस्कार।

(समाप्त)


निबंध 2: दीवाली – प्रकाश का पर्व (300 शब्द)

स्कूल और कॉलेज छात्रों के लिए

प्रस्तावना

दीवाली भारत का सबसे बड़ा और सबसे प्रिय त्योहार है। यह प्रकाश, खुशी और आशा का पर्व है। कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाने वाली दीवाली न केवल दीयों की रोशनी से जगमगाती है, बल्कि हर मन में उल्लास और उमंग भर देती है।


पौराणिक महत्व

दीवाली के साथ कई पौराणिक कथाएँ जुड़ी हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान राम की है। चौदह वर्ष के वनवास के बाद जब प्रभु श्रीराम रावण का वध करके माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे, तो अयोध्यावासियों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है। दीवाली असत्य पर सत्य और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।


दीवाली की तैयारियाँ और उत्सव

दीवाली से कई दिन पहले ही घरों की सफाई और सजावट शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों को रंगोली, फूलों और रंग-बिरंगी लड़ियों से सजाते हैं। दीवाली की रात को लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है। घर-घर में दीये जलाए जाते हैं। बाजारों में रौनक होती है। मिठाइयाँ और उपहारों का आदान-प्रदान होता है। लोग नए कपड़े पहनते हैं और एक-दूसरे को बधाई देते हैं।


सामाजिक और पर्यावरणीय संदेश

दीवाली केवल खुशियों का त्यौहार नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन में सकारात्मकता और भाईचारे का संदेश भी देती है। हमें इस त्योहार को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से मनाना चाहिए। आतिशबाजी कम से कम करें और मिट्टी के दीयों का प्रयोग करें। गरीबों और जरूरतमंदों में खुशियाँ बाँटें।


उपसंहार

दीवाली केवल बाहरी रोशनी का पर्व नहीं है, बल्कि यह हमारे मन के अंधकार को दूर करने का भी पर्व है। इस दिन हमें अपने भीतर की बुराइयों को समाप्त करने का संकल्प लेना चाहिए। जब हर दिल में प्रेम और करुणा का दीया जलेगा, तभी दीवाली की सच्ची रोशनी फैलेगी।

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