दोहा क्या है और कैसे लिखें ?
हिंदी साहित्य में दोहा एक अत्यंत लोकप्रिय और प्रभावशाली काव्य विधा है। संत कबीर, रहीम, तुलसीदास जैसे महान कवियों ने दोहों के माध्यम से अपने गहन विचार, जीवन के सत्य और नैतिक शिक्षाओं को समाज तक पहुँचाया। आज भी दोहे अपनी संक्षिप्तता और गहरे अर्थ के कारण पाठकों को आकर्षित करते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि दोहा क्या है, इसकी संरचना कैसी होती है, और एक प्रभावशाली दोहा कैसे लिखा जा सकता है।
दोहा की परिभाषा — क्या है दोहा?
दोहा हिंदी साहित्य का एक प्रमुख छंद है जो दो पंक्तियों में लिखा जाता है। यह एक अर्धसम मात्रिक छंद है, जिसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में मात्राओं की एक निश्चित संख्या होती है। दोहा का सबसे बड़ा गुण है इसकी संक्षिप्तता — केवल दो पंक्तियों में गहरे भाव और जीवन के सत्य को समेटना।
साहित्यिक परिभाषाएँ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार — "दोहा हिंदी का सर्वाधिक लोकप्रिय और सुबोध छंद है, जो अपनी लयात्मकता और भावप्रवणता के लिए जाना जाता है।"
डॉ. नगेन्द्र के शब्दों में — "दोहा मात्रिक छंद की वह विधा है जो अल्प शब्दों में अधिकतम अर्थ व्यक्त करने की क्षमता रखती है।"
आचार्य केशवदास ने दोहे को परिभाषित करते हुए कहा है — "दोहा वह छंद है जिसके विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13-13 मात्राएँ तथा सम चरणों (दूसरे और चौथे) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।"
साहित्यिक अर्थ
शाब्दिक रूप से 'दोहा' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'दोग्धक' या 'द्विपदिका' से मानी जाती है, जिसका अर्थ है 'दो पंक्तियों वाला छंद'। कुछ विद्वान इसे 'दोहड़ा' या 'दूहा' शब्द से भी जोड़ते हैं। दोहे का साहित्यिक अर्थ है — एक ऐसी काव्य रचना जो संक्षिप्तता, लयबद्धता और गहन अर्थ से युक्त हो।
दोहा की उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
दोहा छंद की उत्पत्ति अपभ्रंश साहित्य से मानी जाती है। प्रारंभिक अपभ्रंश कवियों ने इस छंद का प्रयोग किया, जो बाद में हिंदी साहित्य की धरोहर बन गया।
ऐतिहासिक विकास
अपभ्रंश काल (7वीं-12वीं शताब्दी) — पुष्पदंत, स्वयंभू जैसे अपभ्रंश कवियों ने दोहा छंद का प्रयोग किया। इस समय दोहा मुख्यतः धार्मिक और नीति विषयों पर रचा जाता था।
भक्तिकाल (14वीं-17वीं शताब्दी) — यह दोहे का स्वर्ण युग था। संत कबीर, रहीम, तुलसीदास, सूरदास आदि महान कवियों ने दोहों के माध्यम से भक्ति, नीति, और जीवन दर्शन को जन-जन तक पहुँचाया। कबीर के दोहे आज भी सामाजिक सुधार और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रतीक हैं।
रीतिकाल (17वीं-18वीं शताब्दी) — इस काल में बिहारी, केशवदास आदि कवियों ने श्रृंगार और नीति के दोहे रचे। बिहारी सतसई दोहों का एक अद्भुत संग्रह है।
आधुनिक काल— वर्तमान में भी दोहा लेखन जारी है और नए कवि इस विधा का प्रयोग कर रहे हैं।
दोहा की संरचना — छंद, मात्रा और लय
दोहा एक मात्रिक छंद है, जिसकी संरचना निश्चित नियमों पर आधारित है।
मूल संरचना
- पंक्तियाँ — दोहे में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं।
- चरण — प्रत्येक पंक्ति को दो भागों में विभाजित किया जाता है, इस प्रकार कुल चार चरण होते हैं।
मात्रा गणना
दोहे की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी मात्रा व्यवस्था है:
- विषम चरण (पहला और तीसरा) — प्रत्येक में 13 मात्राएँ होती हैं।
- सम चरण (दूसरा और चौथा)— प्रत्येक में 11 मात्राएँ होती हैं।
- अंतिम लघु — सम चरणों के अंत में गुरु वर्ण नहीं होना चाहिए, अर्थात् अंत में लघु मात्रा होनी चाहिए।
मात्रा गिनने का तरीका
हिंदी में दो प्रकार की मात्राएँ होती हैं:
- लघु (।) — 1 मात्रा (जैसे: क, ख, ग)
- गुरु (ऽ) — 2 मात्रा (जैसे: का, खी, गू, कं, कः)
मात्रा गणना में पारंगत होने के लिए आप विस्तृत जानकारी के लिए "मात्रा गणना" पर हमारा लेख पढ़ सकते हैं।
लय और यति
यति (विराम) — प्रत्येक चरण के बाद एक स्वाभाविक विराम आता है, जो दोहे को लयबद्ध बनाता है।
तुक — सम चरणों (दूसरे और चौथे) में तुक मिलना आवश्यक है। विषम चरणों में तुक वैकल्पिक है।
उदाहरण से समझें
कबीर का प्रसिद्ध दोहा:
```
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
```
- पहला चरण — बुरा जो देखन मैं चला (1+2+1+2+1+1+2+1+2 = 13 मात्राएँ)
( ‘जो' शब्द की मात्रा को उच्चारण के आधार पर लघु लिया गया है , इसी तरह अन्य शब्द जिनका मात्राभार भले ही गुरु हो परन्तु अगर उच्चारण लघु स्वर में हो रहा है तो उसका मात्राभार लघु मान लिया जाता है ,विस्तृत जानकारी के लिए
"हिन्दी काव्य लेखन में मात्रा गणना" लेख पढ़ें
- दूसरा चरण — बुरा न मिलिया कोय (1+2+1+1+1+2+2+1 = 11 मात्राएँ)
- तीसरा चरण — जो दिल खोजा आपना (2+1+1+2+2+2+1+2 = 13 मात्राएँ)
- चौथा चरण — मुझसे बुरा न कोय (1+1+2+1+2+1+2+1 = 11 मात्राएँ)
दोहा लेखन की विधि — कैसे लिखें दोहा?
एक प्रभावशाली दोहा लिखने के लिए कुछ आवश्यक तत्वों का ध्यान रखना जरूरी है।
1. विषय और भाव का चयन
सबसे पहले तय करें कि आप किस विषय पर दोहा लिखना चाहते हैं:
-नीति और सीख — जीवन के सत्य, नैतिक मूल्य
- भक्ति और आध्यात्म — ईश्वर भक्ति, आत्मज्ञान
- श्रृंगार — प्रेम, सौंदर्य वर्णन
- समाज और सुधार— सामाजिक बुराइयाँ, सुधार
- प्रकृति — प्राकृतिक सौंदर्य, ऋतुएँ
भाव स्पष्ट और गहरा होना चाहिए। दोहे में एक केंद्रीय विचार होना चाहिए जो पाठक के मन में गहरा प्रभाव छोड़े।
2. शब्द चयन
सरल और प्रभावशाली — शब्द सरल लेकिन अर्थपूर्ण होने चाहिए। क्लिष्ट शब्दों से बचें।
तत्सम-तद्भव संतुलन — आवश्यकतानुसार संस्कृत और देशज शब्दों का संतुलित प्रयोग करें।
लाक्षणिक प्रयोग — प्रतीक, रूपक, और अलंकारों का सुंदर प्रयोग दोहे को प्रभावी बनाता है।
3. मात्रा गणना करें
प्रारंभिक पंक्ति लिखने के बाद प्रत्येक चरण की मात्राएँ गिनें:
- विषम चरण = 13 मात्राएँ
- सम चरण = 11 मात्राएँ (अंत में लघु)
यदि मात्राएँ कम या अधिक हों, तो शब्दों में परिवर्तन करें।
4. तुक और लय
दूसरे और चौथे चरण के अंत में समान ध्वनि (तुक) रखें। लय का ध्यान रखें — दोहा पढ़ने में मधुर और प्रवाहमय होना चाहिए।
5. अर्थ की गहराई
दोहे में दोहरा अर्थ या गूढ़ अर्थ हो तो और बेहतर। पहली बार में सरल अर्थ समझ आए, लेकिन गहराई से सोचने पर नया अर्थ खुले।
6. पुनरावृत्ति और संशोधन
पहला प्रयास सदा परिपूर्ण नहीं होता। दोहा लिखने के बाद उसे बार-बार पढ़ें, मात्राएँ जाँचें, और आवश्यक संशोधन करें।
प्रसिद्ध कवियों के दोहे — उदाहरण और व्याख्या
संत कबीर के दोहे
कबीर के दोहे सामाजिक कुरीतियों, आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन के सत्य को उजागर करते हैं।
उदाहरण 1:
```
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।
```
व्याख्या — कबीर कहते हैं कि लोग युगों से माला फेरते रहे, लेकिन मन की भ्रांतियाँ दूर नहीं हुईं। बाहरी आडंबर छोड़कर मन को शुद्ध करना चाहिए।
उदाहरण 2:
```
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
```
व्याख्या — ग्रंथों को पढ़कर भी लोग सच्चा ज्ञानी नहीं बन सके। जो प्रेम के ढाई अक्षर (प्रेम की भावना) को समझ ले, वही सच्चा ज्ञानी है।
रहीम के दोहे
रहीम के दोहे नीति, मानवीय मूल्यों और जीवन अनुभव से भरे हैं।
उदाहरण 1:
```
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।।
```
व्याख्या — रहीम कहते हैं कि प्रेम का रिश्ता अत्यंत नाजुक होता है। एक बार टूट जाने पर फिर से जोड़ना कठिन है, और जुड़ भी जाए तो बीच में गाँठ रह जाती है।
उदाहरण 2:
```
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।।
```
व्याख्या— अपने मन का दुःख अपने तक ही रखना चाहिए। दूसरे लोग सुनकर हँसेंगे, लेकिन दुःख बाँटने कोई नहीं आएगा।
तुलसीदास के दोहे
तुलसीदास के दोहे भक्ति, नीति और राम के गुणगान से भरे हैं।
उदाहरण:
```
तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक।।
```
व्याख्या — तुलसीदास कहते हैं कि विपत्ति में विद्या, विनम्रता, विवेक, साहस, पुण्य, सत्य और राम के प्रति विश्वास — ये सात साथी होते हैं।
दोहा लिखते समय सावधानियाँ — इन गलतियों से बचें
1. मात्रा गणना की त्रुटि
दोहा लिखते समय सबसे सामान्य गलती मात्रा गणना में होती है। हर चरण की मात्राएँ अवश्य गिनें। विषम चरणों में 13 और सम चरणों में 11 मात्राएँ रखें।
2. सम चरणों के अंत में गुरु मात्रा
सम चरणों (दूसरे और चौथे) के अंत में गुरु मात्रा (दो मात्रा वाला वर्ण) नहीं होना चाहिए। अंतिम शब्द लघु मात्रा से समाप्त हो।
गलत — "जीवन में सुख मिले" (अंत में 'ले' = गुरु)
सही — "जीवन में सुख होय" (अंत में 'होय' = लघु)
3. तुक का अभाव
दूसरे और चौथे चरण में तुक अवश्य मिलनी चाहिए। बिना तुक के दोहा अधूरा लगता है।
4. भाव की अस्पष्टता
दोहे में भाव स्पष्ट होना चाहिए। अत्यधिक जटिल या अस्पष्ट भाषा से बचें। पाठक को अर्थ समझने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए।
5. अनावश्यक शब्दों का प्रयोग
दोहा संक्षिप्त विधा है। हर शब्द का महत्व है। फालतू या भरती के शब्दों से बचें।
6. लय का टूटना
दोहा पढ़ने में प्रवाहमय होना चाहिए। कहीं भी लय टूटे नहीं। बार-बार पढ़कर लय की जाँच करें।
7. अति आलंकारिकता
अलंकार दोहे को सुंदर बनाते हैं, लेकिन अत्यधिक अलंकारों से दोहा बोझिल हो सकता है। संतुलन बनाए रखें।
8. व्याकरण की त्रुटियाँ
शब्दों का सही रूप, लिंग, वचन, कारक आदि का ध्यान रखें। व्याकरण की गलती से दोहे की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
दोहा लेखन के लाभ
साहित्यिक कौशल विकास
-दोहा लिखने से भाषा पर नियंत्रण, शब्द भंडार और काव्य कौशल विकसित होता है।
संक्षिप्तता की कला
-कम शब्दों में अधिक कहने की कला सीखने को मिलती है, जो जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी उपयोगी है।
मानसिक व्यायाम
-मात्रा गणना, तुक मिलाना और भाव को शब्दों में बाँधना मानसिक क्षमता बढ़ाता है।
सांस्कृतिक जुड़ाव
-भारतीय साहित्यिक परंपरा से जुड़ाव और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करना।
मात्रा गणना की विस्तृत जानकारी के लिए हमारा लेख "मात्रा गणना" पढ़ें, जो दोहा लेखन में अत्यंत सहायक होगा।
नियमित रूप से दोहे लिखें और साहित्य प्रेमियों के समूहों में साझा करें। प्रतिक्रिया से सीखें और सुधारें।
दोहा हिंदी साहित्य की एक अनमोल विधा है जो सदियों से पाठकों को प्रभावित करती आई है। इसकी संरचना भले ही नियमबद्ध हो, लेकिन भाव और अभिव्यक्ति की दृष्टि से यह असीम स्वतंत्रता देती है। दोहा लिखना एक कला है जो निरंतर अभ्यास से निखरती है।
आरंभ में मात्रा गणना और नियमों का पालन कठिन लग सकता है, लेकिन धैर्य और अभ्यास से आप शीघ्र ही सुंदर दोहे रच सकेंगे। याद रखें — हर महान कवि ने भी पहला दोहा लिखते समय संघर्ष किया था। महत्वपूर्ण यह है कि आप प्रयास करते रहें।
तो आज ही कलम उठाइए, कोई विषय चुनिए, और अपना पहला दोहा लिखिए। संभव है कि आपका दोहा भविष्य में किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत बने!
**सुझाव:** दोहा लेखन में पारंगत होने के लिए प्रतिदिन कम से कम एक दोहा अवश्य लिखें। प्रसिद्ध कवियों के दोहों का अध्ययन करें और उनकी शैली को समझने का प्रयास करें।
**लेखक टिप्पणी:** यह लेख विद्यार्थियों, साहित्य प्रेमियों और नवोदित कवियों के लिए तैयार किया गया है। दोहा लेखन की यात्रा में शुभकामनाएँ!
