दोहा लिखना सीखें

Scribble Hindi
0



1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: अपभ्रंश से हिंदी तक का सफर

हिंदी साहित्य में 'दोहा' केवल एक छंद नहीं, बल्कि भारतीय जनमानस की अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम रहा है। इसकी जड़ें वैदिक संस्कृत में नहीं, बल्कि लोकभाषा 'अपभ्रंश' में मिलती हैं। आदिकाल में इसे 'दूहा' या 'दोधक' कहा जाता था।

जिस प्रकार संस्कृत साहित्य में 'श्लोक' का महत्व है, और उर्दू में 'शेर' का, ठीक उसी प्रकार हिंदी और उसकी बोलियों (ब्रज, अवधी, सधुक्कड़ी) में दोहे का स्थान सर्वोपरि है। सरहपा से लेकर कबीर, तुलसी, जायसी, रहीम और बिहारी तक—हर कालजयी कवि ने अपनी बात कहने के लिए इसी 'दो-पंक्तियों' के जादू को चुना। इसका मुख्य कारण है इसकी गेयता (Singability) और संक्षिप्तता (Brevity)


2. दोहा की शास्त्रीय परिभाषा (छंद विधान)

यदि हम छंद शास्त्र (Prosody) की तकनीकी शब्दावली में बात करें, तो दोहा की परिभाषा इस प्रकार है:

"दोहा एक अर्धसम मात्रिक छंद (Semi-metric verse) है। इसके चार चरण होते हैं। विषम चरणों में 13-13 और सम चरणों में 11-11 मात्राएं होती हैं। कुल मिलाकर एक पंक्ति (दल) में 24 मात्राएं होती हैं।"

शब्दार्थ:

  • मात्रिक: जिसकी रचना वर्णों (Letters) की गिनती पर नहीं, बल्कि मात्राओं (Time/Weight) की गिनती पर हो।
  • अर्धसम: जिसके आधे हिस्से (पहला-तीसरा) एक जैसे हों और बाकी आधे (दूसरा-चौथा) एक जैसे।


3. दोहा का शरीर विज्ञान: चरण, यति और गति

एक परिपूर्ण दोहा लिखने के लिए आपको इसके अंगों को समझना होगा:

  1. चरण (Paad/Foot): दोहे में दिखने में दो पंक्तियाँ होती हैं, लेकिन व्याकरण इन्हें चार भाग मानता है।
    • पहला और तीसरा चरण = विषम चरण (Odd Feet)
    • दूसरा और चौथा चरण = सम चरण (Even Feet)

  2. यति (Caesura/Pause): दोहा पढ़ते समय जहाँ हमारी सांस रुकती है, उसे यति कहते हैं। दोहे में यति 13 मात्राओं के बाद (चरण के अंत में) आती है। यदि आप शब्द के बीच में सांस तोड़ रहे हैं, तो यह 'यति-भंग' दोष माना जाएगा।

  3. गति (Flow): दोहे का एक विशेष लय प्रवाह होता है। इसे पढ़ते समय एक 'लहर' महसूस होनी चाहिए। यदि मात्राएं सही हों लेकिन पढ़ने में अटपटा लगे, तो 'गति-भंग' दोष होता है।


4. मात्रा गणना का गणित (13-11 का रहस्य)

दोहा लेखन पूर्णतः गणितीय है। यहाँ भावनाओं के साथ-साथ अंको का सही होना अनिवार्य है।

चरण प्रकार मात्रा संख्या विशेष नियम (Golden Rule)
पहला विषम 13 आदि (शुरुआत) में 'जगड़' (ISI) न हो तो बेहतर। 
दूसरा सम 11 अंत में लघु (1) अनिवार्य है।
तीसरा विषम 13 पहले चरण के समान नियम।
चौथा सम 11 तुकबंदी + अंत में लघु (1)।


5. मात्रा भार के जटिल नियम (Advanced Grammar)

अक्सर नए लेखक (Beginners) मात्रा गिनने में गलती करते हैं। 'Scribble Hindi' के पाठकों के लिए यहाँ हम उन नियमों को स्पष्ट कर रहे हैं जो अक्सर भ्रम पैदा करते हैं:

मूलभूत नियम:

  • लघु (।): अ, इ, उ, ऋ, चंद्रबिंदु (ँ) = 1 मात्रा
  • गुरु (S): आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अनुस्वार (ं), विसर्ग (:) = 2 मात्रा

matrabhaar niyam


विशेष नियम: संयुक्त वर्ण (Conjuncts)

यह सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। आधा अक्षर खुद तो नहीं गिना जाता, लेकिन वह अपने से "पहले वाले" अक्षर को भारी (गुरु) कर देता है।

उदाहरण 1: 'सत्य'

  • 'त' आधा है। इसका भार पीछे वाले 'स' पर पड़ेगा।
  • स = 2 (गुरु), य = 1 (लघु)
  • कुल = 3 मात्राएं।

उदाहरण 2: 'कष्ट'

  • 'ष' आधा है। भार 'क' पर जाएगा।
  • क = 2, ट = 1
  • कुल = 3 मात्राएं।


अपवाद (Exceptions) - जहाँ नियम बदल जाता है:

  1. शब्द की शुरुआत में आधा अक्षर: यदि आधा अक्षर शब्द के शुरू में ही आ जाए, तो उसका भार किसी पर नहीं पड़ता।
    जैसे: 'प्यार' = प्या (2) + र (1) = 3 मात्राएं (यहाँ प का कोई भार नहीं)।

  2. संयुक्त अक्षर से पहले यदि "दीर्घ स्वर" हो: यदि पहले से ही कोई बड़ा अक्षर (जैसे 'आ', 'ई') है, तो वह 3 मात्रा का नहीं होगा, वह गुरु (2) ही रहेगा। हिंदी में 2 से बड़ी कोई मात्रा नहीं होती।
    जैसे: 'प्राप्त' = प्रा (2) + प्त (1) = 3 मात्राएं। (यहाँ आधे 'प' ने 'प्रा' को 3 नहीं किया)।


6. तुकांत का विज्ञान: केवल शब्द नहीं, ध्वनि मिलाएँ

दोहे की जान दूसरे और चौथे चरण की तुकबंदी (Rhyme) में बसती है।
नियम: तुकांत में कम से कम दो स्वरों और अंतिम व्यंजन की समानता होनी चाहिए।

  • उत्तम तुकांत: पानी - जानी, खेल - मेल, सार - पार।
  • दोषपूर्ण तुकांत: आया - खाए (यहाँ 'या' और 'ए' का मेल नहीं है), राम - काम (सही है), राम - नाम (सही है), पर राम - आज (गलत है)।

विशेष टिप: सम चरण (दूसरा और चौथा) का अंत हमेशा 'गुरु-लघु' (S I) के क्रम में होना सबसे मधुर माना जाता है। जैसे- होय (2,1), कोय (2,1)।


7. दोहा लेखन कार्यशाला (Practical Guide)

आइये, अब एक दोहा रचते हैं। मान लीजिये हमारा विषय है: "समय का महत्व"

चरण 1: अंतिम तुकबंदी सोचें (Rhyme Scheme)
हमे चौथे चरण के अंत के लिए शब्द चाहिए। मान लीजिये हमने सोचा: "रोय" (मतलब रोना)।
तो दूसरे चरण के लिए हमें चाहिए: "खोय" (खोना) या "होय"

चरण 2: चौथा चरण लिखें (11 मात्रा)
हम अंत में एक संदेश देना चाहते हैं कि बाद में रोना पड़ेगा।
"बैठ अकेला रोय"
गणना: बै(2) ठ(1) + अ(1) के(2) ला(2) + रो(2) य(1) = 11 मात्राएं। (परफेक्ट!)

चरण 3: दूसरा चरण लिखें (11 मात्रा)
तुकबंदी 'खोय' (खोना) के साथ।
"बीता समय न 
खोय"
गणना: बी(2) ता(2) + स(1) म(1) य(1) + न(1) + खॉ(2) य(1) = 11 मात्राएं।

चरण 4: पहला चरण (13 मात्रा) - भूमिका
"समय की कीमत जान ले"
गणना: स(1) म(1) य(1) + की(2) + की(2) म(1) त(1) + जा(2) न(1) + ले(2) = 14 हो गया। (गलत)
सुधार: "समय की कीमत जानिये"
गणना: स(1) म(1) य(1) + की(2) + की(2) म(1) त(1) + जा(2) नि(1) ये(2) = 14 (अभी भी गलत)
सुधार 2: "करले समय का तू भजन" -> क(1) र(1) ले(2) + स(1) म(1) य(1) + का(2) + तू(2) + भ(1) ज(1) न(1) = 13 (सही!)

चरण 5: तीसरा चरण (13 मात्रा)
"अवसर चूका जो यहाँ"
अ(1) व(1) स(1) र(1) + चू(2) का(2) + जो(2) + य(1) हाँ(2) = 13 (सही!)

तैयार दोहा:
करले समय का तू भजन, बीता समय न खोय।
अवसर चूका जो यहाँ, बैठ अकेला रोय।।


8. दोहे के प्रमुख भेद (साहित्यिक ज्ञान)

दोहा एक ही प्रकार का नहीं होता। आदि और अंत के अक्षरों के आधार पर पिंगल शास्त्र में इसके 23 भेद माने गए हैं। यहाँ तीन प्रमुख दिए जा रहे हैं:

  1. भ्रमर: पहले चरण के शुरू में 'लघु' (1) हो। (जैसे कबीर के अधिकतर दोहे)।
  2. मर्कट: पहले चरण के शुरू में 'गुरु' (2) हो।
  3. शार्दूल: इसमें आदि और अंत के विशेष गुरु-लघु नियम होते हैं।

(सामान्य लेखक के लिए भेद महत्वपूर्ण नहीं है, 13-11 का नियम सर्वोपरि है।)


9. नए लेखकों द्वारा की जाने वाली 5 बड़ी भूलें

  1. संयुक्त वर्ण की अनदेखी: आधे अक्षर का भार पिछले वर्ण पर न जोड़ना सबसे बड़ी गलती है।
  2. अंत में गुरु: दूसरी या चौथी पंक्ति के अंत में 'गुरु' (S) का प्रयोग वर्जित है। जैसे- "जाता है" (है = 2) दोहे के अंत में नहीं आ सकता। "जाता सोय" (य = 1) सही है।
  3. कठिन शब्द: दोहा लोक भाषा का छंद है। 'क्लिष्ट', 'दुरूह', 'आश्चर्य' जैसे शब्दों की जगह 'कठिन', 'अचरज' जैसे तद्भव शब्दों का प्रयोग करें।
  4. अर्थ का बिखराव: दोहे की पहली पंक्ति में जो बात शुरू हो, दूसरी में उसका ठोस जवाब या निष्कर्ष होना चाहिए।
  5. मात्रा पूर्ति के लिए 'ही', 'भी', 'तो' का अनावश्यक प्रयोग: यह दोहे को कमजोर बनाता है।


10. निष्कर्ष: कलम से कागज तक

दोहा लिखना गणित का सवाल हल करने जैसा लग सकता है, लेकिन एक बार जब आप मात्राओं की लय पकड़ लेते हैं, तो यह सांस लेने जैसा स्वाभाविक हो जाता है। तुलसीदास जी ने कहा था— "का भाषा का संस्कृत, प्रेम चाहिए साँच"

यदि आप हिंदी साहित्य में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं, तो 'Scribble Hindi' आपको सुझाव देता है कि प्रतिदिन कम से कम एक दोहा लिखने का अभ्यास करें। शुरुआत में मात्राएं गलत होंगी, यति टूटेगी, लेकिन निरंतर अभ्यास से आप शब्दों के शिल्पी बन जाएंगे।



10. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

सोरठा, दोहे का ठीक उल्टा होता है। दोहे में 13-11 मात्राएं होती हैं, जबकि सोरठा में 11-13 मात्राएं होती हैं। साथ ही, दोहे में तुकबंदी अंत में होती है, जबकि सोरठा में बीच में।

रीतिकालीन कवि 'बिहारी' (Bihari) को दोहा छंद का सम्राट माना जाता है। उनकी 'बिहारी सतसई' में 700+ दोहे हैं जो गागर में सागर भरने का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं।

आधे अक्षर की अपनी कोई मात्रा नहीं होती, लेकिन यह अपने से पहले वाले अक्षर को भारी (Guru/2 मात्रा) बना देता है। यदि आधा अक्षर शब्द की शुरुआत में हो, तो उसकी गिनती नहीं होती।

बिल्कुल! आज के दौर में खड़ी बोली हिंदी में दोहे खूब लिखे जा रहे हैं। भाषा कोई भी हो, बस '13-11' का नियम और 'अंत में लघु' का पालन होना चाहिए।

दोहा 'अर्धसम मात्रिक' है (13-11 मात्रा), जबकि चौपाई 'सम मात्रिक' छंद है जिसमें हर चरण में बराबर 16-16 मात्राएं होती हैं (जैसे हनुमान चालीसा)।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!